अगर आप पटना के हैं तो याद रखिये कि आप सुरक्षित स्तर से छह गुणा ज्यादा प्रदूषित हवा हर सांस में अपने फेफड़े में ठूस रहे हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन का आकलन है कि पटना देश का दूसरा सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर है, जहां के वायुमंडल में प्रदूषित धूलकणों (यानी पार्टिकुलेट मैटर) का जमाव बहुत ज्यादा है। यह आकलन वायु प्रदूषण के एक मानक ‘रेस्पिरेबल संस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर (आरएसपीएम)’ के आधार पर है, जो हवा में व्याप्त प्रदूषित तत्वों जैसे धूल, कण की उपस्थिति को बताता है।
पटना की हवा में उच्च स्तर के जहरीले प्रदूषित कण, खासकर PM2.5 और PM10 जैसे पार्टिकुलेट मैटर की मात्रा क्रमशः 149 माइक्रोग्राम और 164 माइक्रोग्राम है, जो सुरक्षित सीमा से छह गुणा ज्यादा है। अनुमान है कि शहर की ऐसी प्रदूषित हवा लाखों लोगों की सेहत को बेहद नुकसान पहुंचायेगी। पटना में वायु प्रदूषण के खतरनाक स्तर ने वक्त की नजाकत को रेखांकित किया है कि इस पर तुरंत काबू करना बेहद जरूरी है।
खतरनाक स्थिति
पर्यावरण व ऊर्जा संरक्षण से जुड़ी संस्था ‘सेंटर फाॅर एन्वाॅयरोंमेंट एंड एनर्जी डेवलपमेंट’ (सीड) के द्वारा जारी एक रपट के अनुसार ‘वायु प्रदूषण से मुक्त पटना’ (टुवड्र्स हेल्दी एयर फाॅर पटना) नामक रिपोर्ट को जारी करते हुए ‘सीड’ के चीफ एक्जीक्यूटिव आॅफिसर रमापति कुमार ने बताया कि ‘बिजली की मांग व आपूर्ति में बढ़ती खाई पटना में खराब वायु स्तर का एक मुख्य कारक है। जैसे गैर घरेलू क्षेत्र द्वारा पावर बैकअप के रूप में जेनरेटर से बिजली के लिए डीजल जलाना और औद्योगिक इकाइयों द्वारा उत्सर्जन इसके लिए मुख्य रूप से जिम्मेवार है।’
पावर कट से भी प्रदूषण
श्री कुमार ने आगे बताया कि पटना में डीजल का पावर बैकअप के रूप में इस्तेमाल सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण बढ़ाता है। अन्य कारणों में शहर में जरूरत से ज्यादा वाहनों व गाडियों का आवागमन, औद्योगिक उत्सर्जन और दूषित धूलकण आदि हैं। पटना में वायु प्रदूषण की ऐसी अप्रत्याशित बढ़त से निबटने के लिए तत्काल एक ठोस योजना की जरूरत है और प्रदूषण से होनेवाले मानव स्वास्थ्य के खतरों के प्रति व्यापक जनजागरूकता फैलाने की भी आवश्यकता है। ऐसी परिस्थिति में बिहार सरकार को मजबूत इच्छाशक्ति दिखाते हुए अविलंब इस प्रदूषण से निबटने के लिए ठोस कदम उठाना चाहिए।’
सीड की प्रोग्राम मैनेजर अंकिता ज्योति ने इस मौके पर कहा कि ‘गैर घरेलू क्षेत्र सालाना करीब 81 लाख लीटर डीजल जलाता है, जिससे करीब 35 हजार किलोग्राम के बराबर जहरीले व हानिकारक प्रदूषित धूल-कण वायुमंडल में पैदा होते हैं, और यह सब एक घंटे की बिजली जरूरत पूरी करने के लिए किया जाता है। पटना में प्रत्येक दिन करीब दो से नौ घंटे की बिजली कटौती होती है। अगर वायु प्रदूषण के अभी के स्तर को तत्काल रोकने के उपाय नहीं किये गये तो अनुमान है कि वर्ष 2031 तक पार्टिकुलेट मैटर 205 μg/m3 से बढ़ कर 383 μg/m3 तक हो जायेंगे। परिणामस्वरूप प्रदूषित व खराब गुणवत्ता की हवा का खमियाजा शहर के लाखों लोगों को सांस व फेफड़े की गंभीर बीमारियों व सेहत को लगातार नुकसान के रूप में चुकाना होगा।’