पूर्व सांसद शिवानंद तिवारी ने एक बार फिर निशाना साधा है। बिहार के बेहाल और परेशान समूहों को राहत देने का मांझी सरकार फैसला ले रही है, तो नीतीश कुमार के लोग शोर मचा रहे हैं।
श्री तिवारी ने कहा कि अब नीतीश कह रहे हैं कि इन फैसलों को लागू करने के लिए पैसा कहां है। लेकिन क्या इनके पास इस सवाल का जवाब है कि बेली रोड पर अजायब घर बनाने के लिए नौ सौ करोड़ या भीड़-भाड़ और शोर-शराबे वाली जगह पर पुराने जेल परिसर में ध्यान लगाने का स्थान बनाने के लिए तीन सौ करोड़ रुपया कहां से आ गया। या फिर मगध महिला कॉलेज के पास लड़कियों के विरोध के बावजूद कन्वेशन सेंटर बनाने के लिए कई सौ करोड़ रूपये कहां से आ गए।
श्री तिवारी ने कहा कि समस्या पैसे का नहीं, दृष्टि के अंतर का है। आभिजात्य दृष्टि वाले नीतीश कुमार की दृष्टि में विकास का अर्थ बेहलों के बीच वास्तु सौंदर्य का नमूना स्थापित करना है। भूख, गरीबी, अभाव और अपमान के जीवन अनुभव के बीच से आने वाले जीतनराम मांझी के लिए विकास का अर्थ लोंगो को उस हाल से बाहर निकालना है। मांझी जी का सारा निर्णय बिहार के बेहाल तबकों को लक्षित करता है। चाहे वह किसान हो या दलित या वित्त रहित शिक्षक हों या ठेके पर बहाल कर्मचारी, सरकार के फैसलों से इन सबको राहत मिलेगी। जब तक मांझी सरकार है, उसको फैसला लेने के अधिकार से न तो राज्यपाल रोक सकते हैं न राष्ट्रपति।
उन्होंने कहा कि नीतीश जी अभी भी प्रधान मंत्री के नशे की खुमारी में है। इसीलिए बिहार के मौजूदा सत्ता संग्राम में साजिश का आरोप प्रधान मंत्री पर लगा रहे हैं। भले ही प्रधान मंत्री नहीं बन पाये। लेकिन प्रधान मंत्री को अपने खिलाफ साजिशकर्ता बताकर अपने को उनके समानांतर साबित करना चाहते हैं। एक पुराने मित्र और सहयोगी के नाते नीतीश की हालत पर तरस आ रहा है।
Comments are closed.