आरएसएस और उसके संगठनों द्वारा नकली टोपी-दाढ़ी लगा कर आतंकी बनना और कभी पाकिस्तानी झंडा फहरा कर मुस्लिमों पर इल्जाम धर देने का उसका सफर जेएनयू में पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाने तक पहुंच चुका है. नवल शर्मा संघ के हिंसक और घृणा आधारित करतूतों के इतिहास को खंगाल रहे हैं. लीजिए गौर से पढिये.
जेएनयू और कन्हैया मुद्दे पर बीजेपी जिस तरह देश में राष्ट्रवाद की आड़ में भावनात्मक और सांप्रदायिक गोलबंदी का खेल खेल रही है उसे समझना बहुत मुश्किल नहीं है . लोग महंगाई को भूल जायें , रोहित वेमुला को भूल जाएँ , अल्पसंख्यकों पर हमले को भूल जाएँ , मोदी सरकार की नाकामियों पर चर्चा नहीं हो . देश के सबसे बड़े विचारकेंद्र की वैचारिक धार को कुंद कर दिया जाए , उसकी रणनीति के कई सारे पहलू हैं
वैसे भी नकली दाढ़ी टोपी पहनकर फर्जी मुस्लिम आतंकी बन जाना आरएसएस का पुराना हथकंडा रहा है . आपको जानकार आश्चर्य होगा कि नाथूराम गोडसे नकली मुसलमानी दाढ़ी टोपी लगाकर गांधी को मारने के लिए कई प्रयास कर चुका था . कर्णाटक के बीजापुर में आरएसएस के लोग मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर चोरी छिपे पाकिस्तान का झन्डा फहराते हुए पकड़े जा चुके हैं . एटीएस की चार्जशीट में साफ़ लिखा है की मालेगांव हमले को नकली दाढ़ी टोपी लगाकर अंजाम दिया गया. आरएसएस आज फिर उसी रास्ते पर है
अब यह लगभग साफ़ हो चुका है कि जिस देशद्रोही नारेबाजी को लेकर इतना हो हंगामा किया जा रहा है उसके असली सूत्रधार एबीवीपी के लम्पट थे . चूँकि कई राज्यों में चुनाव होनेवाले हैं , इसलिए निकट भविष्य में अगर किसी दूसरे शैक्षणिक संस्थान में भी देशद्रोही नारे लगें तो इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए . फिलहाल आरएसएस अपने एबीवीपी और अन्य आनुषांगिक संगठनों के माध्यम से इस तरह की सनसनीखेज राजनीति की दिशा में आगे बढती रहेगी जिसमें एक ओर आरएसएस के लोग जेएनयू की तरह रात के अँधेरे में देशद्रोही नारे लगायेंगे और सुबह के उजाले में राष्ट्रवाद की लाठी भांजेंगे .
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वैसे भी नकली दाढ़ी टोपी पहनकर फर्जी मुस्लिम आतंकी बन जाना आरएसएस का पुराना हथकंडा रहा है . आपको जानकार आश्चर्य होगा कि नाथूराम गोडसे नकली मुसलमानी दाढ़ी टोपी लगाकर गांधी को मारने के लिए कई प्रयास कर चुका था . कर्णाटक के बीजापुर में आरएसएस के लोग मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर चोरी छिपे पाकिस्तान का झन्डा फहराते हुए पकड़े जा चुके हैं . एटीएस की चार्जशीट में साफ़ लिखा है की मालेगांव हमले को नकली दाढ़ी टोपी लगाकर अंजाम दिया गया. आरएसएस आज फिर उसी रास्ते पर है .
1931 में दलितों के मार्च पर बम फेका
शायद यह जानकर आश्चर्य हो कि 1925 में जब आरएसएस की स्थापना हुई थी उस वक्त उसे मजाक में रॉयल सीक्रेट सर्विस भी कहा जाता था क्यूंकि इसका मुख्य काम ही था अंग्रेजों की जासूसी करना . अगर यह आरोप लगता है कि जेएनयू मामले को तूल देकर बीजेपी दलित रोहित वेमुला की हत्या से लोगों का ध्यान बंटाना चाह रही है तो इसमें भी दम है क्यूंकि 1931 में जब गाँधी जी ने दलितों के लिए यात्रा निकाली थी तो आरएसएस के प्रचारकों ने उसपर बम फेंकी थी .
आजादी की लड़ाई में भाग न लेने का प्रस्ताव
1931 में ही आरएसएस की मीटिंग में यह प्रस्ताव पारित किया गया था की वह आज़ादी की लड़ाई में भाग नहीं लेगा . हाँ आरएसएस ने एक काम जरुर किया . देश की एकता को तोड़ने के लिए उसने कई सारे साहित्यिक और वैचारिक हथियार बनाये , कई पुस्तकें लिखीं जिनके माध्यम से हिन्दू समाज को गुमराह करने और हिन्दू – मुस्लिम वैमनस्य को तेज करने की कोशिश की गयी . मुगलों के झूठे अत्याचार की कहानियाँ गढ़- गढ़ कर इन संघीयों ने इतना जहर फैलाया की राम और रहीम की एकता वाले इस देश में नफरत की हवायें बहने लगीं .
अंग्रेजों की मुखबिरी
कभी आपने सुना है की आरएसएस ने कभी अंग्रेजों की आलोचना की हो , कभी जलियांवाला बाग़ के शहीदों का शहादत दिवस मनाया हो ! ऐसा क्या हो गया कि अचानक भारत में देशद्रोही शक्तियां जेएनयू से लेकर सब जगह भारत विरोधी नारे लगाने लगीं ? ये सब आरएसएस का ही षड्यंत्र है जिसे समझने की आवश्यकता है . सुप्रीम कोर्ट के भीतर से दिल्ली के पुलिस कमिश्नर बस्सी को फोन लगाकर पूछा जाता है कि आप कन्हैया को सुरक्षित ले जाने में सक्षम हैं या नहीं . पूरी दिल्ली पुलिस मोदी के ‘ स्टॉर्म एस्त्रुपर्स ‘ की भूमिका में है जिसके हाँथ बाँध दिए गए हैं और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के लम्पटों को खुला छोड़ दिया गया है . अगर आरएसएस ने आज़ादी की जंग में नाख़ून भी कटवाए होते तो बात समझ में आती . भारत का कोई बच्चा न तो कसाब का समर्थन करेगा और न ही ऐसी गतिविधियों का , पर साध्वी प्रज्ञा कैसे आदर्श हो सकती है ? ये राष्ट्रवादी लोग जब भगत सिंह पर समारोह आयोजित करते हैं तो भगत के परिवारवाले उस कार्यक्रम में शामिल नहीं होते हैं , शहीद हेमंत करकरे की बीबी नरेंद्र मोदी को अपने घर से वापस कर देती है
आजादी के पचास साल तक तिरंगा नहीं फहराया
अब समय आ गया है की ऐसे लोगों को बेनकाब किया जाए . ये न हिन्दू के हैं न मुस्लिम के , हैं तो केवल सत्ता के . अगर विश्वास न हो तो इनकी सामाजिक विचारधारा में हिन्दू समाज के निम्न वर्गों की क्या स्थिति है , हिन्दू महिलाओं को देखने का इनका क्या नजरिया है , ऐसी तमाम बातें हैं जिनको जानने समझने की जरुरत है . और जिस हिन्दू राष्ट्र की बात ये लोग करते हैं उसका सामाजिक और वैचारिक आधार कितना संकीर्ण है . तिरंगे को पैर से कुचलनेवाले लोग और 2004 तक अपने दफ्तरों में तिरंगा नहीं फहराने वाला आरएसए राष्ट्रवाद के नाम पर राष्ट्र को एक बार फिर से घृणा फैला कर राजनीतिक रोटी सेंकने के अभियान पर निकल पड़ा है.
नवल शर्मा जनता दल युनाइटेड के बिहार प्रदेश प्रवक्ता है. यहां व्यक्त विचार उनका निजी है.