उल्टी का इलाज चार हजार रुपये में। उल्टी के मरीज का इमरजेंसी में इलाज। यही हाल है स्वास्थ्य सेवा का। सरकारी स्वास्थ्य सेवा की कब्र पर पनप रहा है निजी अस्पतालों का धंधा। निजी अस्पतालों की लूट के खिलाफ अभियान का स्वांग रचता है स्वास्थ्य विभाग और मरीजों को निजी अस्पताल में भेजने को विवश भी करता है।
वीरेंद्र यादव
घटना शनिवार की रात की है। फुलवारीशरीफ का रहने वाला संजय कुमार की मां सीता देवी की तबियत अचानक खराब हुई और दो-तीन उल्टी हो गयी। वह अपनी मां को गर्दनीबाग स्थित सरकारी अस्पताल में ले गया। वहां इमरजेंसी में तैनात डॉक्टर ने मरीज को देखा और ओआरएस की पुडि़या और कुछ टेबलेट लिखा। इसके अलावा मरीज की बैचेनी की कोई दवा में नहीं दी। परेशान की हालत में उन्हें बेड भी नहीं उपलब्ध कराया गया। साथ ही सलाह दी गयी कि पीएमसीएच या प्राइवेट में ले जाइए।
मनमानी वसूली
इसके बाद संजय अपनी मां को अनिसाबाद स्थित प्राइवेट नर्सिंग होम एसएस होस्पीटल ले आया। वहां जांच के बाद डॉक्टर ने दवा लिखी। स्थिति इतनी खराब नहीं थी कि उन्हें इमरजेंसी में रखा जाए। लेकिन अस्पताल प्रबंधन ने मरीज को इंमरजेंसी में भर्ती कर दिया। इमरजेंसी के नाम पर 22 सौ रुपये वसूले गए। डॉक्टर की फी अलग से थे। ब्लड प्रेशर जांचने की फी अलग से। अलग-अगल टुकडों में रसीद थमाकर कर करीब चार हजार रुपये एसएस अस्पताल को भुगतान किया गया।
सरकारी अस्पतालों की बदहाली से नर्सिंग होम मालामाल
गर्दनीबाग स्थित अस्पताल को पीएमसीएच के समान दर्जा प्राप्त है। लेकिन इस अस्पताल में नाम मात्र की दवाएं उपलब्ध हैं। बदलते मौसम में होने वाली बीमारियों के लिए आवश्यक दवाएं और स्लाइन उपलब्ध होता तो संजय को निजी अस्पताल में चार हजार रुपये का चुना नहीं लगा होता। राज्य सरकार ने अस्पतालों की मॉडल बिल्डिंग बना रही है, लेकिन आवश्यक सुविधाएं नहीं मुहैया करा रही है। यही कारण है कि अस्पताल कब्रगाह बनते जा रहे हैं और उसी अव्यवस्था की कब्र पर निजी अस्पताल मालामाल हो रहे हैं और मरीजों से मनमानी वसूली कर रहे हैं। अनावश्यक जांच भी करवाते हैं और जांच करने वाले पैथोलॉजी से कमीशन वसूलते हैं। सीता देवी को भी डॉक्टर ने करीब दो हजार रुपये के जांच को कहा था, लेकिन पैसे के अभाव में संजय ने जांच से इंकार कर दिया था।
प्रधान सचिव आरके महाजन की जिम्मेवारी क्या है
स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव आरके महाजन स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार का दावा करते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि विभाग, अस्पताल और डाक्टर सिर्फ दिखावा बनकर रह गये हैं। अपनी नाकामियों और कमियों के कारण मरीजों का विश्वास खोते जा रहे हैं। सरकार को जनता के विश्वास और भरोसे कोो बनाए रखना होगा, तभी हालात बदलेंगे।