कांग्रेस ने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले को बिना सोचे समझे स्वीकार कर लेने को रिजर्व बैंक की स्वायत्तता के लिए बड़ा खतरा बताते हुये आज कहा कि आरबीआई ने ऐसा करके मोदी सरकार को अपनी स्वयात्ता सौंप दी है। पार्टी ने आरबीआई की स्वायतता हनन के खिलाफ पटना में वेदना मार्च भी निकाला।
बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष एवं राज्य के शिक्षा मंत्री अशोक चौधरी ने आरबीआई को सौंपे एक ज्ञापन में कहा कि मोदी सरकार ने पिछले वर्ष 07 नवंबर को केंद्रीय बैंक को एक एडवाईजरी भेजा, जिसमें 500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों को चलन से बाहर करने के लिए कहा गया था। आरबीआई बोर्ड ने इसके अगले दिन बैठक कर इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।
इससे यह साबित होता है कि रिजर्व बैंक ने बिना सोचे समझे अपनी स्वायत्ता मोदी सरकार को सौंपने का निर्णय कर लिया। श्री चौधरी ने सवालिया लहजे में कहा कि आरबीआई ने मोदी सरकार से एक ही झटके में 86 प्रतिशत नोटों चलन से बाहर करने से कास्ट-बेनेफिट एनालिसिस के लिए क्यों नहीं कहा। केंद्रीय बैंक ने 08 नवंबर 2016 को हुई बैठक का विवरण जनता के सामने क्यों नहीं रखा। क्या यह प्रधानमंत्री के फरमानों की वजह से आरबीआई की अपनी स्वायत्ता को सरकार के समक्ष सौंपने के खुलासे के डर से तो नहीं है।
शिक्षा मंत्री ने केंद्रीय बैंक गवर्नर उर्जित पटेल पर नोटबंदी मामले में बहुमत से फैसला नहीं लेने का आरोप लगाते हुये कहा कि आरबीआई के निदेशक मंडल में कुल 21 सदस्य हैं। इनमें से आठ सदस्य 08 नवंबर 2016 की बैठक में शामिल हुए, जिसमें नोटबंदी का फैसला लिया गया। इन आठ सदस्यों में से 4 स्वतंत्र सदस्य थे। तो यह कैसे मान लिया जाए कि नोटबंदी जैसे बड़े फैसले को लेने से पहले पूरी गंभीरता से विचार किया गया होगा।