बिहार संग्रहालय की इतिहास दीर्घाओं व अन्‍य दीर्घाओं का लोकार्पण के अवसर पर आयोजित पांच दिवसीय समारोह के दूसरे दिन आज दूसरे दिन संग्रहालय के सभागार में चित्रकला पर विशेष परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस परिचर्चा को संबोधित करते हुए चित्रकार श्री प्रभाकर कोल्‍टे ने कहा कि आज हमारे देश में आर्ट के क्षेत्र में क्रिटिक्‍स की कमी है, जिसकी किसी भी क्षेत्र में जिम्‍मेवारी काफी अहम होती है। आज जितने भी क्रिटिक्‍स यहां हैं भी, वो साहित्‍य के क्षेत्र से आते हैं।

नौकरशाही डेस्‍क

उन्‍होंने कहा कि जितनी ज्‍यादा क्रिटिसिज्‍म होगा, कला का उतना समृद्ध होगा। ये कला के माता पिता की तरह होता है। तभी तो दूसरे देशों के चित्रकार आर्ट क्‍लास में पढ़ाये गए कंपोजीशन से परे जाकर एक से एक कलाकृति को सामने लाते हैं। जॉन मर्जर एक क्रिटिक हुआ करते हैं, जो मूलत: कवि हैं। लेकिन उन्‍होंने आर्ट के बारे में लिखना शुरू किया और अब तक 23 किताबें लिख चुके हैं। हमारे पास ऐसे क्रिटिक्‍स की कमी है।

श्री कोल्‍टे ने कहा कि चित्रकला देखने की कला है। पेंटिंग के तकनीक, नियम, कंपोजीशन की समझ तो हमें स्‍कूल से मिलती है, लेकिन असल मायने में हम क्‍या देखना चाहते हैं, ये हमारे समझ पर निर्भर करता है। हुसैन, गायकोंडे, अबदा सरीखे कलाकारों में देखने की अद्भुत क्षमता थी। स्‍कूल में सिखाये कंपोजीशन के बाद किसी वस्‍तु को कैसे देखते हैं और उसके बाद जो मिलता है, वो अपना होता है। आज हमारे यहां इस चीज का ह्रास हुआ है, इसके लिए हमारा एजुकेशन सिस्‍टम भी जिम्‍मेवार है। कारण है कि आज भी 40 – 45 से वहां सिलेबस नहीं बदला, जिससे हमारे छात्रों के सोचने की कला भी समिति हो गई। फिर यही छात्र जब यहां से निकल कर बाहर जाते हैं, तो उनके लिए वहां की कला कृति से प्रभावित होते हैं और फिर उससे सीख कर कोई अपनी पेंटिंग का निर्माण करता है और कोई कॉपी करता है। इनसब के बीच जिनके पास अपनी सोच होती है, वही सराहे जाते हैं। वहीं, परिचर्चा के दौरान कला, संस्‍कृति एवं युवा विभाग के अपर सचिव आनंद कुमार,सांस्‍कृतिक निदेशालय के निदेशक सत्‍यप्रकाश मिश्रा, विभाग के उप सचिव तारानंद वियोगी, अतुल वर्मा, संजय सिंह, संजय सिन्‍हा, जे पी एन सिंह, मीडिया प्रभारी रंजन सिन्‍हा आदि लोग उपस्थित थे।

वहीं, इससे पहले आज दूसरे दिन चंपारण सत्‍याग्रह  और राष्‍ट्रपिता महात्‍मा गांधी के थीम पर एक वर्कशॉप का भी आयोजन किया गया, जो आगामी छह अक्‍टूबर तक चलेगा। इसमें देश के ख्‍यातिलब्‍ध कलाकार गांधी जी और उनके चंपारण सत्‍याग्रह से संबंधित कई प्रकार कलाकृतियों का निर्माण कर रहे हैं। वर्कशॉप में शामिल हुए बडोदरा गुजरात के आर्ट क्रिटिक ज्‍योति भट्टा ने बताया कि हालांकि संग्रहालय अभी शैशवास्‍था में है, लेकिन यह इतिहास का संजोने की एक अच्‍छी पहल है। उन्‍होंने भोपाल (मध्‍य प्रदेश) में स्थित भारत भवन का जिक्र करते हुए कहा कि मुझे बस इस बात का डर है कि इसका संचालन भी आगे उतने ही ढंग से हो, जितने उत्‍साह और सोच के साथ इसका निर्माण किया गया है। लेकिन हमें उम्‍मीद है कि य‍ह संग्रहालय अपने मकसद में कामयाब होगा। इसके अलावा  उत्तराखंड से आये कलाकार अतुल सिन्‍हा ने बताया कि उन्‍हें गांधी जी से मिले इंस्‍परेशन ने बिहार संग्रहालय खींच लाया। उन्‍होंने बताया कि उनकी रूचि पेंटिंग और फोटोग्राफी में रूचि नहीं है। लेकिन लकड़ी को काट का एक विशेष प्रकार की आकृति बनाने में मजा आता है। मैं यहां नील की खेती से संबंधित आकृति को इस अलमोड़ की लकड़ी पर उकेर रहे हैं।

इसके अलावा आर्ट गैलरी में गांधी जी के विचारों से जुड़ी पेंटिंग के बारे में उसके कॉडिनेटर आर एन सिंह ने बताया कि आर्ट गैलरी में देशभर के जाने माने चित्रकारों की पेंटिंग का प्रदर्शन किया गया है, जो गांधी जी के विचारों को उनके सोच और विजन के अनुसार दिखाया है। इसमें हुसैन साहब, रजा साहब जैसे दिग्‍गज चित्रकारों की भी पेंटिंग का प्रदर्शन किया गया है। इस दीर्घा में गांधी के अफ्रीका से चंपारण आने के बाद की पेंटिंग और गांधी के विचारों को आज के संदर्भ में मृगतृष्‍णा की तरह बनाई गई पेंटिंग काफी रोचक है। इसके अलावा गांधी के विचारों को आत्‍मसात करने के लिए कलाकारों ने अपने – अपने दृष्टिकोण कैनवस पर उतारे हैं। इस दीर्घा में देश के कुल 42 कलाकारों की पेंटिंग लगाई गई है, जिनमें गांधी के विचार परिलक्षित होते हैं। श्री सिंह ने इस एग्‍जीवीशन के लिए बिहार सरकार और मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार को धन्‍यवाद भी दिया और कहा कि जब उन्‍हें इस समारोह में शामिल होने का मौका मिला, तो उन्‍हें खुशी हुई। 

 

By Editor


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