पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्‍न अटल बिहार वाजपेयी को भारतीय राजनीति में शिखर पुरूष की तरह देखा जाता है. संभवत: वे अकेले ऐसे राजनेता हैं, जिनके मुरीद सभी दलों के लोग हैं. जवाहर लाल नेहरू से लेकर आज के दौर में सर्वमान्‍य राजनेता हैं. तभी तो एक बार पंडित नेहरू ने किसी विदेशी अतिथि से अटल बिहारी वाजपेयी का परिचय संभावित भावी प्रधानमंत्री के रूप में कराया.

स्‍पेशल रिपोर्ट, नौकरशाही ब्‍यूरो

कहा जाता है कि 1971 में भारत-पाकिस्‍तान युद्ध की पृष्‍ठभूमि में संसद में अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने संबोधन में इंदिरा गांधी को ‘दुर्गा’ कहकर संबोधित किया था. तब हालांकि विपक्ष के नेता थे, लेकिन युद्ध में भारत की उल्‍लेखनीय सफलता और इंदिरा गांधी की भूमिका के कारण उनको ‘दुर्गा’ कहकर संबोधित किया. वहीं, इस संबंध में वरिष्‍ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी की किताब ‘हार नहीं मानूंगा- एक अटल जीवन गाथा’ में इस बात का जिक्र किया है. इस किताब में दावा किया गया है कि एक बैठक में वाजपेयी ने कहा था, ‘इंदिरा ने अपने बाप नेहरू से कुछ नहीं सीखा. मुझे दुख है कि मैंने उन्हें दुर्गा कहा.’

भारतीय राजनीति के शिखर पुरुष रहे अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बार कहा था कि वह 1952 से चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन कभी किसी पर कीचड़ नहीं उछाला. वह दरअसल राजनीति में मानवीय मूल्‍यों के पक्षधर थे. इसकी बानगी इसी बात से समझी जा सकती है कि उनके इस देश में आजादी के बाद सबसे लंबे समय तक राज करने वाले नेहरू-गांधी परिवार के साथ रिश्‍ते सहज रहे. राजीव गांधी की मौत के बाद पत्रकार करण थापर के प्रोग्राम Eyewitness में वाजपेयी ने जिस घटना का जिक्र किया, वो उनकी महानता को और भी पुख्‍ता करता है.

इस बारे में करण थापर ने अपनी हाल में प्रकाशित किताब द डेविल्‍स एडवोकेट में जिक्र किया है कि 1987 में अटल बिहारी वाजपेयी किडनी की समस्‍या से ग्रसित थे. उस वक्‍त उसका इलाज अमेरिका में ही संभव था. लेकिन आर्थिक साधनों की तंगी के कारण वह अमेरिका नहीं जा पा रहे थे. इस दौरान तत्‍कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को पता नहीं कैसे वाजपेयी की बीमारी के बारे में पता चल गया. उन्‍होंने अपने दफ्तर में वाजपेयी को बुलाया. उसके बाद कहा कि वे उन्‍हें संयुक्‍त राष्‍ट्र में न्‍यूयॉर्क जाने वाले भारत के प्रतिनिधिमंडल में शामिल कर रहे हैं. इसके साथ ही जोड़ा कि उम्‍मीद है कि वे इस मौके का लाभ उठाकर वहां अपना इलाज भी करा सकेंगे.

थापर ने लिखा है कि 1991 में राजीव गांधी की हत्‍या के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने उनको याद करते हुए इस बात को पहली बार सार्वजनिक रूप से कहा. उन्‍होंने करण थापर को बताया, ”मैं न्‍यूयॉर्क गया और इस वजह से आज जिंदा हूं.” दरअसल न्‍यूयॉर्क से इलाज कराकर जब वह भारत लौटे तो इस घटना का दोनों ही नेताओं ने किसी से भी जिक्र नहीं किया. कहा जाता है कि इस संदर्भ में उन्‍होंने पोस्‍टकार्ड भेजकर राजीव गांधी के प्रति आभार प्रकट किया था.

वरिष्‍ठ पत्रकार किंगशुक नाग की किताब ‘अटल बिहारी वाजपेयी- ए मैन फॉर ऑल सीजन’ के अनुसार, एक बार जब ब्रिटिश प्रधानमंत्री भारत की यात्रा पर आए तो पंडित नेहरू ने वाजपेयी से उनका विशिष्‍ट अंदाज में परिचय कराते हुए कहा, “इनसे मिलिए. ये विपक्ष के उभरते हुए युवा नेता हैं. मेरी हमेशा आलोचना करते हैं लेकिन इनमें मैं भविष्य की बहुत संभावनाएं देखता हूं.” एक बार पंडित नेहरू ने किसी विदेशी अतिथि से अटल बिहारी वाजपेयी का परिचय संभावित भावी प्रधानमंत्री के रूप में कराया.

नाग ने अपनी किताब में 1977 की एक घटना का जिक्र किया है, जो बताता है कि पंडित नेहरू के प्रति वाजपेयी के मन में कितना आदर था. उनके मुताबिक 1977 में जब वाजपेयी विदेश मंत्री बने तो जब कार्यभार संभालने के लिए साउथ ब्‍लॉक के अपने दफ्तर पहुंचे तो उन्‍होंने गौर किया कि वह पर लगा पंडित नेहरू की तस्‍वीर गायब है. उन्‍होंने तुरंत अपने सेकेट्री से इस संबंध में पूछा. पता लगा कि कुछ अधिकारियों ने जानबूझकर वह तस्‍वीर वहां से हटा दी थी. वो शायद इसलिए क्‍योंकि पंडित नेहरू विरोधी दल के नेता थे. लेकिन वाजपेयी ने आदेश देते हुए कहा कि उस तस्‍वीर को फिर से वहीं लगा दिया जाए.

By Editor


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