कम लोग यह जानते हैं के शुरुआती दौर में इस्लाम के अनुयायियों को भारत के अंदर बुद्धिस्टों के द्वारा मदद मिलती रही थी। मुहम्मद बिन क़ासिम पहला ऐसा मुस्लिम सिपहसालार नहीं था जिसने भारत पर हमला किया था।
काशिफ यूनुस
मुहम्मद बिन क़ासिम से पहले भी दो बार इराक के गवर्नर हज्जाज बिन युसूफ ने भारत पर हमला करवाया था लेकिन इन दोनों हमलों में हज्जाज बिन यूसुफ की सेना भारत के पंजाब साम्राज्य के राजा दाहिर को हराने में नाकामयाब रही थी।
हज्जाज बिन यूसुफ की सेना
माजरा कुछ यूँ था कि अरब के व्यापारी भारत और दूसरे पूर्वी राज्यों की मंडी में कारोबार करने आते थे। लेकिन अक्सर ही उनका माल से भरा हुआ जहाज़ सिंध के तटीय इलाक़ों में समंदरी लुटेरों के दुआरा लूट लिया जाता था। हज्जाज बिन युसूफ ने कई बार राजा दाहिर को इस बारे में लिखा लेकिन राजा दाहिर ने ये कहके कि ये समुंद्री लुटेरे उसके राज्य की सीमाओं से बहार रहते हैं इन लुटेरों पर कोई भी कार्यवाई करने से इनकार कर दिया था। ये रवैया ऐसा ही था जैसे कि आज पाकिस्तान कश्मीर में होने वाले आतंकवाद को रोकने में अपनी असमर्थता ये कहकर जाता देता है के वो कश्मीर में आने वाले आतंकवादियों को रोकने में सामर्थ्य नहीं है हालांकि पाकिस्तान चाहे तो दो दिन में कश्मीरी आतंकवादियों के सारे कैम्पों को बंद करवा सकता है।
एक बार समुंद्री लुटेरों ने जब एक अरब जहाज़ को लूटा तो एक मुस्लिम औरत को राजा दाहिर को उपहार स्वरुप दे दिया। समुंद्री लुटेरे लूट का माल और क़ैद किये गए ग़ुलाम अक्सर राजा दाहिर को खुश रखने के लिए उसे दे दिया करते थे। इस मुस्लिम औरत ने हज्जाज बिन युसूफ को चिठ्ठी लिखी जिसमे उसने हज्जाज बिन युसूफ से मदद मांगी. हज्जाज बिन युसूफ की सेना ने दो बार राजा दाहिर पर हमला किया लेकिन पंजाब के इलाक़े पर क़ब्ज़ा न कर सके.
मुहम्मद बिन कासिम- 711
आख़िरकार हज्जाज बिन युसूफ ने ये काम अपने भतीजे मुहम्मद बिन क़ासिम को दिया. मुहम्मद बिन क़ासिम ने 711 ईस्वी में भारत के हिन्दू राजा दाहिर पर हमला कर दिया. दाहिर का शासन सिंध और मुल्तान के इलाक़ों पर था. दाहिर के पड़ोस में एक बुद्धिस्ट राजा राज करता था। दाहिर ने मुहम्मद बिन क़ासिम के खिलाफ लड़ने के लिए इस बुद्धिष्ट राजा की मदद मांगी लेकिन इस बुद्धिस्ट राजा ने मदद करने से साफ़ इनकार कर दिया। मुहम्मद बिन क़ासिम एक एक करके दाहिर की हुकूमत के सारे शहरों को जीतने का अभियान छेड़ दिया. जिस शहर को मुहम्मद बिन क़ासिम जीत लेता उस शहर के बुद्ध धर्मावलंबी भी मुहम्मद बिन क़ासिम के साथ हो जाते.
ज्ञात हो के अशोक के मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद ब्राह्मणवादी शक्तियां मौर्य और दूसरे बुद्धिस्टों पर धीरे धीरे हावी होती जा रही थीं. मुहम्मद बिन क़ासिम भारत में अशोक सम्राट की मृत्यु के लगभग 743वर्ष के बाद आया था लेकिन उस समय भी बौद्ध धर्म के मानने वाले लोग छोटे छोटे राज्यों के राजा हुआ करते थे एवं उनकी सामाजिक व राजनितिक शक्ति बहुत हद तक बची हुई थी।
हज्जाज बिन युसूफ की मृत्यु हो जाने के कारण मुहम्मद बिन क़ासिम को वापिस जाना पड़ा और फिर अगले 300 साल तक किसी मुस्लिम राजा ने भारतवर्ष की तरफ निगाह न की। मुहम्मद बिन क़ासिम के जाने के 300 साल बाद महमूद ग़ज़नवी भारत आया लेकिन तब तक बौद्ध मत राजनितिक और सामजिक तौर पर काफी कमज़ोर हो चूका था। यह पतन सामाजिक तौर पर इतना निचे उतर चूका था की मौर्य वंश और साम्राज्य के लोग जिन्हें आज हम कुशवाहा और कुर्मी जाती के नाम से जानते हैं, उन्होंने भी बिहार और उड़ीसा के इलाक़ों में बौद्ध धर्म को छोर कर हिन्दू देवी देवताओं की पूजा करना शुरू कर दिया था।
लेकिन ग़ज़नी के इलाक़े में कुछ बौद्ध लोग बिहार और उत्तरप्रदेश के इलाक़े से भाग कर वहां जा बेस थे। क्योंकि ग़ज़नी में मुहम्मद बिन क़ासिम ने जाते जाते अपना एक सिपासलार छोड़ दिया था जोकि मुल्तान और सिंध के हिन्दू राजाओं से खलीफा के लिए टैक्स वसूलता था। ग़ज़नी में मुसलमानो की एक छोटी सी आबादी भी मुहम्मद बिन क़ासिम के वक़्त में ही बस गयी थी जिसका राजा बाद में चलकर महमूद ग़ज़नी हुआ और भारत पर मुहम्मद बिन क़ासिम के बाद आक्रमण करने वाला यही दूसरा मुस्लिम राजा था.
[author image=”https://naukarshahi.com/wp-content/uploads/2016/08/kashif.jpg” ]काशिफ यूनुस पटना हाई कोर्ट में एडवोकेट हैं. वह समाज बचाओ आंदोलन और बैरिस्टर मोहम्मद यूनुस फांउडेशन के प्रमुख हैं.[/author]