आज भारत के तमाम विश्वविद्यालयों में वैदिक संस्कृति नामक डुप्लीकेट भारतीय इतिहास पढ़ाई जा रहा है। वैदिक सभ्यता नहीं संस्कृति रही है, जिसका कोई ठोस तथ्य व आधार नहीं है। ये बातें प्रसिद्ध आलोचक व ओबीसी सिद्धांतकार राजेंद्र प्रसाद सिंह ने स्थानीय गांधी संग्रहालय में बागडोर द्वारा आयोजित संगोष्ठी के अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहीं। उन्होंने इतिहास लेखन और साहित्य लेखन के पूर्वग्रह को विस्तार के साथ अपने वक्तव्य में विश्लेषित किया।pramod

फारवर्ड प्रेस के ‘बहुजन साहित्य वार्षिकी’ का लोकार्पण

 

‘बहुजन साहित्य समाज व संस्कृति विषयक इस संगोष्टी के मुख्य अतिथि थे बिहार सरकार के वित वाणिज्यकर एवं उर्जा मंत्री बिजेंद्र प्रसाद यादव। उन्‍होंने कहा कि  कहा कि राजनीति सत्‍ता परिवर्तन के लिए होती है। समाज परिवर्तन के लिए आंदोलन की आवश्यकता पहले भी थी और आज भी है। भारत की संस्कृति पर कटाक्ष करते हुए उन्‍होंने कहा कि भारत की संस्कृति संत, सामंत और ढोंगियों की संस्कृति रही है। इस मौके पर फारवर्ड प्रेस के बहुजन साहित्य विशेषांक के लोकार्पण में संयुक्त रूप से गोष्ठी में शामिल वक्ताओं के अलावा प्रमोद रंजन भी मंच पर दिखे।

 

वरिष्ठ पत्रकार श्रीकांत ने कहा कि उन्हें इस बात की खुशी है कि जिस त्रिवेणी संघ के काम को उन्होंने सामने लाया, उसे साहित्य के मोर्चे पर प्रमोद रंजन जैसे लेखक आगे बढ़ा रहे हैं। उन्होंने कहा कि जातियां जड़ नहीं, अपितु बहुत ही गतिशील इकाई हैं। इस मौके पर महेंद्र सुमन, हसन इमाम, प्रों सईद आलम, पिछड़ा वर्ग आयोग के सदस्य जगनारायण सिंह यादव, पत्रकार हेमंत कुमार, अशोक यादव, इंजीनियर संतोष, अरुण नारायण, अरुण कुमार आदि मौजूद थे। इस मौके लगभग दो सौ लेखक, बुद्धिजीवी व सामाजिक कार्यकर्ता उपस्थित थे।

By Editor

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