इस्लाम में महिला अधिकारों के प्रति नकारात्मक धारणा को समाप्त करने की जरूरत.
इस्लाम के विद्वानों और जानकारों ने आधुनिक युग मे विज्ञान की प्रगति को समावेशित करते हुए इस्लाम के अंदर उसके लिए संभावनाएं तलाशी है।
इस्लाम के विरोधी ऐसा प्रचारित करते रहे हैं कि इस्लाम आधुनिकता का पक्षधर नही है। क़ुरान की सही तशरीह नही करने वाले कुछ इस्लामिक विद्वानों ने भी काफी दिनों तक महिलाओं को क़ुरान में दिए गए अधिकारों का पालन नही होने दिया, जिसकी वजह से आज भी मुस्लिम महिलाओं के उत्पीड़न की घटनाएं सुनने को मिलती रहती है। परिणामस्वरूप इस्लाम के बारे में ऐसी धारणा बनने लगी कि ये महिला विरोधी है और तरक़्क़ी पसंद मज़हब नही है। लेकिन अगर हम क़ुरान में औरत के हुक़ूक़ तलाशें तो पाते हैं कि कुरान के सूरे निसा में कई आयतें खास तौर पर औरतों के हक़, उसके साथ हमदर्दी और अच्छे सुलूक की पैरवी करता है। इसके अलावा कई हदीसें भी हैं जो मुसलमानों को औरतों के हक़ के बारे में बताती हैं।
इस्लाम में महिला अधिकार
जो अधिकार इस्लाम ने महिलाओं को दिया है उनमें से कुछ प्रमुख हैं- विरासत की दौलत का अधिकार, शिक्ष, रोजगार, निजी सम्पत्ति अर्जित करने,बाप या पति के नाम के बजाये अपना स्वतंत्र नाम रखने, मताधिकार, मस्जिद में नमाज पढ़ने और यहां तक कि अपने विवेक से पत को डायवर्स देने का अधिकार समेत तमाम अधिकार महिलाों को, पुरुषों के समान दिये गये हैं.
अब बड़े पैमाने पर मुस्लिम महिलाएं अपने हुक़ूक़ को लेकर सजग है और मुस्लिम मर्द भी इसमें बड़े सहायक सिद्ध हो रहे हैं। हिन्दुस्तान के संदर्भ में देखे तो आज़ादी के संघर्ष के दिनों में उलेमा ने अंग्रेजों और उनकी चीजों के खिलाफ जो भी फतवा दिया था उसका इतना गहरा असर हुआ कि बाद के दिनों तक लोग आधुनिकता से नफरत करते रहे। लेकिन अंग्रेजी संस्कृति ने विज्ञान में कई अहम योगदान दिया और आज लोगों की ज़िंदगी का अहम हिस्सा है, इसके बिना आधुनिक समय मे जीवन की कल्पना मुश्किल है।
अब पिछली बातों को पीछे छोड़कर मुसलमान भी विज्ञान के क्षेत्र में इतने आगे निकल चुके हैं कि उसकी कल्पना कुछ सदी पहले तक की भी नहीं जा सकती थी। उधर भारत के पारम्परिक मदरसों में आधुनिक शिक्षा आम होती जा रही है. दीनी मदरसों के उलेमा भी स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी चला रहे हैं। और इस तरह कई उलेमा ने इस्लाम में आधुनिकता के समावेश पर अहम योगदान देने में जुटे हैं.