पांचजन्य ने दादरी में अखलाक के कत्ल के बाद लिखा था- ‘अखलाक के साथ सही हुआ, गोहत्या करने वालों के प्राण हर लो’. पांचजन्य के इस बेशर्म झूठ की कलई तो उन्हीं दिनों खुल गयी थी, लेकिन अब औपचारिक रूप से जो जांच रिपोर्ट सार्वजनिक की गयी है उसमें दर्ज है कि अखलाक के घर जो गोश्त बरामद हुआ था वह गाय का नहीं बल्कि बकरे का था.
इर्शादुल हक, सम्पादक, नौकरशाही डॉट इन
इतना ही नहीं,चार्जशीट में भाजपा के स्थानीय नेता संजय राणा को आरोपी बनाया गया है. झूठ और अफवाहबाजी के लिए आरएसएस पर वैसे तो अकसर आरोप लगते रहे हैं लेकिन इसके मुख्यपत्र पांचजन्य ने झूठ की इस आग में जिस तरह से पेट्रोल डाला, उस पर यह सवाल लाजिमी है कि पांचजन्य के सम्पादक हितेश शंकर को क्या सजा दी जानी चाहिये?
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अगर गोहत्या करने वाले की सजा यही है, जिसकी घोष्णा तालिबानी अंदाज में पांचजन्य ने की. उसने अखलाक की हत्या को जायज ठहराया. और अब जबकि इसकी हकीकत बिल्कुल उलट सामने आ चुकी है, तो क्या यह ऐलान किया जाये कि पांचजन्य के सम्पादक को भी फांसी की सजा दी जाये? लेकिन धैर्य रखिये हम इस तरह का ना तो तालिबानी फरमान जारी कर सकते हैं और न ही ऐसी मांग कर सकते हैं. लेकिन इतना जरूर कह सकते हैं कि हिंसा को जायज ठहराने, समाज में घृणा को बढ़ावा देने और दो समुदायों के बीच साम्प्रदायिक उन्माद फैलाने की नापाक कोशिश करने वाले हितेश शंकर के खिलाफ भारतीय संहिता के अनुसार कार्रवाई जरूर होनी चाहिए.
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क्या था मामला
ठीक तीन महीने पहले की बात है. यह 29 सितम्बर का दिन था. मुसलमान पूरी दुनिया में बकरीद का त्यौहर मना रहे थे. तभी एक दिन उत्तर प्रदेश के दादरी में अफवाहबाजों की भीड़ ने मोहम्मद अखलाक के घर धावा बोल दिया. उसके दरवाजे उखाड़ फेके. अखलाक को घर से घसीट कर बाहर लाया गया. फिर घर के सामने पीट-पीट कर, पत्थरों से कुचल कर उसकी निर्मम हत्या कर दी गयी. इतना ही नहीं यही हस्र उसके बेटे का भी किया गया. लेकिन किस्मत अच्छी थी कि वह सिर्फ बुरी तरह से जख्मी हो सका और बच गया.
अफवाहबाजों ने यह बात फैलाई कि अखलाक ने अपने घर में बछड़े का गोश्त रखा है. जबकि अखलाक की बेटी बिलखती हुई कहे जा रही थी कि उसके घर में बछड़ा का नहीं बल्कि खसी का गोश्त है. पर किसी ने उसकी बात नहीं सुनी. हत्या के बाद अखलाक की बेटी ने एक वाजिब सवाल उठाया था कि क्या अगर यह साबित हो जाये कि उसके घर में गाय का गोश्त नहीं तो क्या वे उसके अब्बू को वापस जिंदा कर देंगे? दंगाइयों और नफरत के सौदागरों के पास इस सवाल का जवाब न उस वक्त था और न अब है. पर अकलाक दुनिया छोड़ गये. यह सवाल भी तभी से अनुत्तरित है कि इस तरह के अफवाहबाजी को जायज ठहराने वालों के साथ क्या किया जाये? ऐसे में सबसे पहली कार्रवाई पांचजन्य और उसके सम्पादक के खिलाफ होनी चाहिये, जो हत्या को जायज ठहराता है, वह भी अफवाह और झूठ की बुनियाद पर की गयी हत्या को.
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