संघ परिवार द्वारा गिरीश कर्नाड के नाटकों के प्रदर्श्न रोके जाने के विरोध में रंगकर्मियों-कलाकारों के साझा मंच ने प्रतिरोध सभा का आयोजन किया. इस अवसर पर रंगकर्मियों ने ईंट का जवाब पत्थ से देने की वकालत की
गिरीश कर्नाड के नाटकों का रोका जाना हमारे संविधान प्रदत्त नागरिक अधिकारों पर हमला है। आज एक ऐसा नया भारत आया है जो हमारे स्वाधीनता आंदोलन के महान सांस्कृतिक निर्माताओं के योगदान से अपरिचित है। यू.आर अनंतमूर्ति की जब मौत हुई तो इन सांप्रदायिक शक्तियों ने उनकी मौत पर पटाखे छोड़े। ये लोग सिर्फ भोग को महत्वपूर्ण मानते हैं, शरीर को महत्ता देते है लेकिन आजादी शरीर से भी बड़ी चीज है। यदि मुझे आजादी और शरीर में से एक केा चुनना हो तो मैं आजादी केा चुनूंगा।’’
ये बातें प्रख्यात कवि आलोकधन्वा ने रंगकर्मियों-कलाकारों के साझा मंच ‘हिंसा के विरूद्ध संस्कृतिकर्मी’ द्वारा गिरीश कर्नाड के नाटक पर आर.एस.एस ;विश्व हिंदू परिषद, संस्कार भारती द्वारा प्रदर्शन रोके जाने के खिलाफ आयोजित प्रतिरोध सभा में कही। प्रतिरोध सभा में बड़ी संख्या में युवा रंगकर्मी, साहित्यकार, बुद्धिजीवी, सामाजिक कार्यकर्ता आदि मौजूद थे। आलोकधन्वा ने प्रख्यात इतिहासकार रामशरण शर्मा, जवाहरलाल नेहरू, कर्पुरी ठाकुर आदि का उदाहरण देते हुए बताया ‘‘ आप किस पार्टी में हैं ये महत्वपूर्ण सवाल नहीं है बल्कि सबसे प्रमुख बात है कि आज सत्य कुचला जा रहा है।’’
वक्ताओं ने एक सुर में इस नाटक के प्रदर्शन पर रोक से नाराजगी जताते हुए ईंट का जवाब पत्थर से देने की वकालत की.
सभा को संबोधित करते बंग्ला कवि विद्युतपाल ने कहा ‘‘ आज हम ज्ञान से अज्ञान की ओर जैसे बढ़ रहे हैं। एक मिडोक्रिटी का जमाना है मूर्खतापूर्ण बातें की जा रही हैं इतिहास को तोड़-मरोड़ कर फासीवादी राजनीति के लिए रास्ता बनाया जा रहा है। ईश्वरचंद विद्दासागर के मुख से मोदी के सफाई अभियान केा सहीं ठहराया जा रहा है।’’
वरिष्ठ रंगकर्मी अनिल अंशुमन ने अपने संबोधन में कहा ‘‘ इस पटना शहर में आर.एस.एस जैसे संगठनों की हिम्मत नहीं होती थी। लेकिन केाई खाली जगह थी जिसे ये सांप्रदायिक लोग भर रहे थे गिरीश कर्नाड के नाटक का रोका जाना यही इंगित करता है। अपनी सुरक्षा की पहली शर्त है कि हम भी उन पर आक्रमण करें’’ .
मजदूर नेता अरूण मिश्रा ने कहा ‘‘ हमें इन प्रतिक्रियावादी शक्तियों का विरोध करते समय साम्राज्यवाद का ध्यान रखना चाहिए। साम्राज्यवाद का नर्तन हो रहा है। सम्राज्यवाद राष्ट्र का धर्म के आधार पर बॅंटवारा करना चाहता है जिसमें सांप्रदायिक शक्तियां मदद पहॅंुचा रही है। आर.एस.एस विश्व हिंदू परिषद और संस्कार भारती जैसे संगठन साम्राज्यवाद केा मदद करते हैं। ये स्थानीय संस्कृति का इस्तेमाल अपने बाजार के विस्तार के लिए करते हैं। ’’ अरूण मिश्रा ने आगे कहा ‘‘ ये फिरकापरस्त ताकतें मिथक केा इतिहास में परिवर्तित करना चाहते हैं। सामूहिक ताने-बाने केा खत्म करने की कोशिश है। अपने देश में सबके अलग-अलग खाने-पीने की आदतें हैं सबको उसका सम्मान करना होगा।’’
वरिष्ट रंगकर्मी जावेद अख्तर ने प्रतिरोध सभा केा संबोधित करते हुए कहा ‘‘ ये लोग लिटमस टेस्ट की तरह देखते हैं कि कि केाई गलत बात की जाए तो लोग कितना सह सकते हैं। ये फासीवादियों की पुरानी रणनीति हैं। इसलिए हमलोगों केा अपने प्रतिरोध में केाई कमी नहीं करनी है।
अभिनेत्री मोना झा के अनुसार ‘‘ हमें इस प्रतिरोध को और व्यापक बनाकर और दूसरे संगठनों को भी जोड़ना चाहिए ’’
‘भिखारी ठाकुर स्कूल ऑफ ड्रामा’ के हरिवंश ने कई उदाहरणों के माध्यम से बताया कि ‘‘ आर.एस.एस के लोग खुलेआम हमारे नाटकों पर हमला करने की केाशिश करते है लेकिन हमने हमेशा आम जनता के सहयोग से इसे असफल किया है। उन्होंने 3 अप्रैल को कालिदास रंगालय में ‘भगवान मुसहर’ नाटक का उद्घाटन करने के दौरान आलोकधन्वा द्वारा जब इन सांप्रदायिक शक्तियों का खूंख्वार व कातिल चेहरा उजागर किया जाने लगा तो आर.एस.एस के लोगों ने मीटिंग बाधित करने की केाशिश की थी।’’ हरिवंश जी ने रंगकर्मियों से प्रतिक्रियावादी संगठनों वैचारिक संघर्ष को तेज करने की अपील जारी करते हुए ये भी कहा कि हमें अपने नाटकों में ‘‘ जनता को सिर्फ मरते हुए ही नहीं बल्कि उन्हें लड़ते हुए, संघर्ष करते हुए दिखाएं’’
वरिष्ठ रंगकर्मी कुणाल गिरीश कर्नाड के नाटकों के रोके जाने की घटना आर.एस.एस जैसे संगठनों द्धारा खेले जाने वाले खेल बताते हुए कहा ‘‘ हम लोगों को भी प्रत्याक्रमण के खेल में पारंगत होना होगा। आक्रमण-प्रत्याक्रमण के इस खेल में हमें उन्हें सबक सिखाना होगा’’
प्रतिरोध सभा को प्रगतिशील लेखक संघ के सुमंत, पटना विश्वविद्यालय में इतिहास की रिटायर्ड प्रेाफेसर रहीं भारती.एस कुमार, वरिष्ठ रंगकर्मी उषा वर्मा, हाजीपुर से आए वरिष्ठ रंगकर्मी क्षितिज प्रकाश, सामाजिक कार्यकर्ता इंद्रदेव एवं युवा रंगकर्मी सनत आदि ने संबोधित किया। मौजूद प्रमुख लोगों में पटना वि.वि में इतिहास के प्रोफेसर सतीश जी, साहित्यकार अरूण शाद्वल, चित्रकार वीरेंद्र कुमार, फिल्मकार जिया हसन, एजाज, वरिष्ठ रंगकर्मी रमेश सिंह, शैलेश जमुआर, मनीष महिवाल, प्रवीण सप्पू, सुरेश कुमार हज्जू, युवा रंगकर्मी मृत्युंजय शर्मा, राजदेव, अजीत कुमार, मृणाल, समीर, रवि महादेवन, हीरालाल, मृत्युंजय प्रसाद, रघु, समीर आदि मौजूद थे। समारोह का संचालन जयप्रकाश ने किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन अनीश अंकुर ने किया।