लालू प्रसाद ने अपने गांव फुलवारिया की यादों को समटते हुए कहा ह कि उच्च वर्ग के लोग उनके पिता और उन्हें जातिसूचक गालियों से आवाज लगा कर बुलाते थे.
लालू प्रसाद ने भैंस को नहलाते हुए अपनी तस्वीर के साथ फेसबुक पर अपने उद्गार व्यक्त करते हुए लिखा है कि मैं बेहद गरीब परिवार में जन्मा, पिताजी मामूली किसान थे. गाय, भैंस और बकरी चराने के लिए हम पिताजी के पीछे-पीछे जाते थे. हमने हर उस चीज का अनुभव किया है जो गाँव में किसान और मजदूर के बेटे को होते हैं. गाँव के उच्च वर्गों के लोग पिताजी और हमें जातिसूचक गालियों से आवाज लगाकर बुलाते थे।
गर्मी के दिनों में पोखर में नहाकर सूरज की तपिश दूर भगाते थे तो जाड़े के दिनों में गन्ने के पत्तों को जलाकर आग तापते थे.
वोट का राज होगा तो छोट का राज होगा
कभी नहीं सोचा था कि फुलवरिया जैसे छोटे से गाँव में मिट्टी के कच्चे घर में पल-बढ़कर और सामंतवादी सोच के लोगों के बीच से उठकर मैं बिहार का मुख्यमंत्री बन जाऊँगा. अब जब भी फुर्सत मिलती है गाँव से संबंधित सारे क्रिया क्रिया-कलाप करने से खुद को अपने संस्कारों से जोड़े रखना चाहता हूँ एवं इससे असीम शांति भी मिलती है। मैं स्वंय गायों को खिलाता हूँ, नहलाता हूँ, दूध भी निकालता हूँ, घर में सब्ज़ी भी उगाता हूँ, रसोई में खाना भी बनाता हूँ।
लालू ने कहा है कि देहात के गरीब-गुरबों से बतियाना अच्छा लगता है, उनके हालात को समझता ही नहीं सुलझाने का भी प्रयास करता हुँ. मैं दिखावटी जीवन नहीं जीता जैसा हूँ वैसा बोलता हूँ, मैंने कभी भी इन भाजपाई पाखंडियों की तरह अपनी गरीबी की मार्केटिंग नहीं की ।
ये तो बाबा साहेब के लोकतंत्र का कमाल है. हमारे नेता लोहियाजी कहा करते थे कि “वोट का राज होगा तो छोट का राज होगा”. अग़र वोट का राज नहीं होता तो हम तो आज भी गाय, भैंस, बकरी ही चरा रहे होते।
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