उत्तराखंड के बागी विधायक कल से शुरू हो रही विधानसभा की कार्यवाही में हिस्सा नहीं ले सकेंगे, क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने इस संबंध में उनकी याचिका पर फिलहाल कोई राहत देने से इन्कार कर दिया है। शीर्ष अदालत ने विधानसभा अध्यक्ष के बागी विधायकों के संबंध में विधानसभा अध्यक्ष के फैसले पर रोक लगाने से इन्कार करते हुए कहा कि फिलहाल अध्यक्ष का फैसला बरकरार रहेगा और मामले की अंतिम सुनवाई 28 जुलाई को होगी।
हालांकि न्यायालय ने सुनवाई के दौरान कई बड़े सवाल खड़े किये। शीर्ष अदालत ने पूछा कि यदि विधानसभा अध्यक्ष को हटाने के लिए लाया गया प्रस्ताव लंबित हो तो क्या प्रस्ताव लाने वाले विधायकों को अयोग्य घोषित किया जा सकता है। न्यायालय ने पूछा कि ऐसी स्थिति में ऐसा नहीं लगता कि अध्यक्ष पक्षपातपूर्ण फैसला ले सकता है।
विधानसभा अध्यक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलील दी कि यह मामला बहुत ही गंभीर है और इसे संविधान पीठ को भेजा जाना चाहिए। उधर रावत सरकार की ओर से कहा गया कि राज्य का नियम कहता है कि अध्यक्ष के खिलाफ प्रस्ताव लाने से पहले विधानसभा सचिव को 14 दिन पहले सूचित करना होगा, लेकिन बागी विधायकों ने ऐसा नहीं किया। गौरतलब है कि भारतीय जनता पार्टी में हाल में शामिल हुए ये बागी विधायक कल उच्चतम न्यायालय पहुंचे। इन्होंने न्यायालय से अनुरोध किया है कि उन्हें 21 जुलाई से शुरू हो रहे विधानसभा के विशेष सत्र में शामिल होने का मौका दिया जाए। बागी विधायकों की ओर से कहा गया है कि अध्यक्ष ने गत 27 मार्च को उन्हें अयोग्य घोषित किया था, जो असंवैधानिक है।