उच्चतम न्यायालय ने उत्तराखंड विधानसभा में कल होने वाले शक्ति परीक्षण में हिस्सा लेने की अनुमति संबंधी कांग्रेस के नौ बागी विधायकों का अनुरोध आज ठुकरा दिया। न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति शिवकीर्ति सिंह की पीठ ने बागी विधायकों एवं विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल के वकीलों का पक्ष सुनने के बाद इस मामले में नैनीताल उच्च न्यायालय के फैसले में कोई अंतरिम हस्तक्षेप से इन्कार कर दिया।
बागी विधायकों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सी ए सुन्दरम ने दलील दी कि उनके मुवक्किल केवल निवर्तमान मुख्यमंत्री हरीश रावत के खिलाफ थे और इसका कतई मतलब नहीं लगाया जाना चाहिए कि वे पार्टी के खिलाफ थे। उन्होंने दलील दी कि कम से कम इन विधायकों को मतदान में शामिल कराकर उनके मतों को सीलबंद लिफाफे में रख दिया जाए, लेकिन विधानसभा अध्यक्ष की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और एक अन्य प्रतिवादी के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने इसका पुरजोर विरोध किया।
उन्होंने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष के अधिकारों में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता। इसके बाद न्यायालय ने कहा कि वह उच्च न्यायालय के फैसले में फिलहाल हस्तक्षेप नहीं करेगा। हालांकि शीर्ष अदालत ने उन विधायकों को अयोग्य ठहराये जाने के उच्च न्यायालय के फैसले के विरुद्ध उनकी विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) पर विधानसभा अध्यक्ष एवं अन्य को नोटिस जारी करके जवाब तलब किया है। मामले की अगली सुनवाई 12 जुलाई को होगी।