बिहार विधान सभा की 10 सीटों के लिए हो रहे उपचुनाव को लेकर भाजपा संशय में है। संशय की वजह राजद-जदयू-कांग्रेस का गठबंधन होना नहीं है। संशय या भय की वजह है उपचुनाव को लेकर भाजपा का आंतरिक विश्लेषण, जिसमें कहा गया है कि उत्तर प्रदेश व बिहार जैसे राज्यों में त्रिकोणीय मुकाबले में जीत आसान है, लेकिन आमने-सामने की लड़ाई में कठिन चुनौती का सामना करना पड़ेगा। पिछले लोकसभा चुनाव के साथ विधान सभा के लिए हुए पांच सीटों के उपचुनाव में भाजपा को सिर्फ एक सीट ही मिली थी।
बिहार ब्यूरो
भाजपा के एक शीर्ष पदाधिकारी ने अनौपचारिक बातचीत में बताया कि यह चुनाव आमने-सामने की हो गयी है। वैसी स्थिति में चुनाव को आसान नहीं माना जा सकता है। पार्टी पूरी गंभीरता से चुनाव लड़ रही है। क्योंकि लोकसभा के बाद बने राजनीतिक समीकरण और वोटों के ध्रुवीकरण का संकेत उपचुनाव में मिल ही सकता है। पार्टी नेता का मानना है कि वोटों का पैटर्न लोकसभा चुनाव के समान नहीं होगा। उसमें नरेंद्र मोदी के नाम पर एक हवा थी, जो इस चुनाव में गायब है।
विधानसभा क्षेत्रों से मिल रही जानकारी के अनुसार, वोटरों में खासा उत्साह नहीं है। मौसम ने चुनाव प्रचार को फीका कर दिया है। लेकिन उम्मीदवार अधिकाधिक लोगों तक पहुंचने का प्रयास कर रहे हैं। दोनों गठबंधनों के नेता भी चुनाव में ताकत झोंक दिये हैं। कांग्रेस के बिहार प्रभारी सीपी जोशी भी प्रचार के लिए आए हुए हैं। भाजपा के बिहार प्रभारी व केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान भी प्रचार में जुटे हैं। हालांकि भाजपा के पास अभी तीन ही स्टार प्रचारक हैं। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष नंदकिशोर यादव, पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मंगल पांडेय इसमें शामिल हैं। लोजपा के रामविलास पासवान व रालोसपा के उपेंद्र कुशवाहा भी यदाकदा प्रचार में दिख रहे हैं। जबकि लालू प्रसाद यादव व नीतीश कुमार के साथ मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी भी प्रचार में कूद गए हैं। लालू व नीतीश की कुल पांच सभाएं एक साथ प्रस्तावित हैं, जिसमें दो सभा हाजीपुर व मोहिद्दीनगर में सभा हो चुकी है, जबकि तीन सभाएं 17 अगस्त को होनी हैं। अन्य नेताओं को प्रचार अभियान भी जारी है।
कुल मिलाकर दोनों गठबंधनों चुनाव को लेकर पूरी ताकत झोंक दी है। पार्टी नेताओं का सर्वाधिक ध्यान जातीय गोलबंदी पर केंद्रित है और इसी पर जीत का दारोमदार भी निर्भर है। वैसे हालत में नीतियों की कम, जातीयों की चर्चा ज्यादा हो रही है। इस मामले में भाजपा नेताओं पर राजद गठबंधन के नेता भारी पड़ रहे हैं। लेकिन किन जातियों का स्थानीय समीकरण क्या बनता है और वह किस पार्टी के साथ खड़े होते हैं। इसी पर पार्टियों का भविष्य व उम्मीदवारों की हार-जीत निर्भर करती है।