उपचुनाव में जातिगत समीकरणों को साधने में जुटी पार्टियां

विहार विधान सभा चुनावों का एलान हो चुका है।सभी पार्टियां सीटों के गणित को साधने में जुटी है।जातिगत फैक्टर सबसे बड़ा फैक्टर है बिहार चुनावों का।विधान सभा चुनावों के साथ ही वाल्मीकिनगर संसदीय सीट का भी उपचुनाव होना है।


2019 के संसदीय चुनावो में जदयू के वैद्यनाथ महतो ने यहां कांग्रेस के नेता को पटखनी दी थी परन्तु वैद्यनाथ महतो के असमय निधन से ये सीट पिछले लगभग 6 महीनों से रिक्त है। अब यहां उपचुनाव के लिए एनडीए और महागठंबधन दोनों ही दम भर रही है। तैयारियों की बात करे तो महागठबंधन एनडीए से आगे दिखता है।

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महागठबंधन की सबसे अपेक्षित उम्मीदवार मंजूबाला पाठक पिछले काफी समय से यहां सक्रिय नज़र आती है।पूरे लॉकडौन के दौरान उनके द्वारा किये गए कार्य उल्लेखनीय रहे है।फिर वो चाहे राशन वितरण हों,मास्क और सैनिटाइजर वितरण हो या सैनिटाइजेशन का प्रोग्राम हो उन्होंने अपने कार्यो से सबका ध्यान आकर्षित किया है। महिलओं और दलितों के लिए उन्होंने अपने कार्यो का जायज़ा लोगो के बीच देना शुरू कर दिया है।इसके अलावा राहुल गांधी के महिला सशक्तिकरण के अभियान की बानगी वो खुद करती हैं। जातिगत समीकरण की बात करें तो यादवों, अल्पसंख्यकों और दलितों के अलावा वो खुद ब्राह्मण हैं और महिला भी जिसका फायदा उनको चुनावों में मिल सकता है।

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वहीं अगर बात एनडीए की करे तो कई नाम आते है।जिनमे सबसे प्रमुख नाम सुनील कुमार, और प्रेम चौधरी के है।इसके अलावा वाल्मीकिनगर विधान सभा के निर्दल प्रत्याशी रिंकू सिंह को भी एनडीए टिकट दे सकता है।बात अगर जातिगत समीकरण की करे तो फारवर्ड वोट्स के साथ कुर्मी,पासवान और थारू समुदाय के वोट्स एनडीए के खाते में जाएंगे।यहां निर्दलीय भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।बसपा भी यहां अच्छे वोट्स पाती रही है।ये भी देखना दिलचस्प होगा कि बसपा अपने किसी उम्मीदवार को उतारती है या नही।

पार्टियां चाहे जैसे भी समीकरण बना लें मगर इस बार वोटर्स ने अपना मुद्दा मन ही मन बना लिया है।जो इन मुद्दों के नज़दीक पहुँचेगा वही जीत का हकदार होगा।वैसे पूरे बिहार में उथलपुथल का माहौल है और इस समय कुछ भी कहना जल्दी बाज़ी होगा।पर पिछले कुछ सालों के उपचुनावों को देखे तो महागठबंधन का ही पलड़ा भारी दिखता है।

By Editor


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