सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती ‘‘राष्ट्रीय एकता दिवस’’ पर देश में 31 अक्टूबर को दौड़ लगी। इस दौड़ की खूबी यह रही कि राजधानी से लेकर सभी राज्यों के लोगों ने दौड़ लगायी। लेकिन इस दौड़ ने देश की राजधानी में दौड़ने वालों के सामान्य ज्ञान की पोल खोल दी।
संजय कुमार, भारतीय सूचना सेवा
और उनके दौड़ में शामिल होने पर सवाल भी खड़े कर दिये कि बिना जाने-समझे-पढ़े लिखे तथाकथित शहरियों का देश के प्रति सामान्य ज्ञान के क्या मायने है? सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती पर 31 अक्टूबर को दौड़ के दौरान दिल्ली में एक खबरिया चैनल के पत्रकार ने समाज के विभिन्न वर्ग के लोगों से पूछा, क्यों दौड़ रहे है और सरदार वल्लभभाई पटेल कौन थे? लोगों के जवाब हैरत में डालने वाले साबित हुए. एक ने कहा बस पर्ची मिली दौड़ने आ गये। दूसरी ने कहा दौड़ हो रही थी बस शामिल हो गये….. ।
दौड़ क्यों और किसके लिए है इस पर सटीक जवाब पत्रकार महोदय को नहीं मिला।
सरदार पटेल को किसी ने समाजिक कार्यकर्ता तो किसी ने भारतीय जनता पार्टी का नेता तो किसी ने कहा ‘पता नहीं’ । हद तो तब हो गयी जब एक पढ़ी लिखी लड़की ने कहा कि वे क्रांतिकारी नेता थे और देश की आजादी के दौरान अंग्रेज के हाथ नहीं आने को लेकर खुद को गोली मार ली थी।
ऐसे कई जवाब साबित करते हैं कि या शिक्षा व्यवस्था गड़बड़ हो गयी है या फिर देश की जनता को इतिहास-भूगोल और राजनीतिक-सामाजिक चेतना से कोई लेना देना नहीं ? इसके पीछे एक वजह साफ दिखती है वह यह कि लोगों के बीच पढ़ने लिखने का माहौल खत्म हो रहा है। पत्र-पत्रिका तो दूर साहित्य से भी सरोकार खत्म होता जा रहा है।
पहले लाइब्रेरी में पढ़ने वालो की भीड़ होती था आज कुर्सीयां खाली रहती है। घर में आने वाले पत्र-पत्रिकाओं को बच्चें नहीं पढ़ते। उनकी नजर मोबाइल फोन,टैब और कम्प्यूटर पर टिकी रहती है। बस हो या मैट्रो ट्रेन सब जगह एक जैसा नजारा। एक वक्त था जब लोग पत्र-पत्रिकाएं पढ़ते थे। छात्रों के हाथ में हिन्दी या अंगे्रजी साहित्य की पुस्तक होती थीं। अब यह नहीं दिखता। दोष किसे दें? समय को, समाज को, विज्ञान को या अपने आप को ?
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