जनजातीय मामलों के केंद्रीय मंत्री जुएल ओराम ने आदिवासी समाज के सामाजिक – आर्थिक कल्याण की सरकार की प्रतिबद्धता व्यक्त करते हुए आज कहा कि आदिवासी बच्चों की गुणवत्तायुक्त शिक्षा के लिए स्थापित एकलव्य आदर्श विद्यालयों में 10 प्रतिशत स्थान सामान्य वर्ग को दिये जाएंगे। श्री ओराम ने नई दिल्ली में कहा कि आदिवासी समाज के बच्चों की शिक्षा के लिये बनायें गए एकलव्य विद्यालयों का प्रदर्शन सामान्य विद्यालयों से बेहतर रहा है। इन विद्यालयों में छात्रों का उत्तीर्ण प्रतिशत शत प्रतिशत रहता है और बच्चों 90 प्रतिशत अंकों के साथ कक्षा उत्तीर्ण करते हैं।
उन्होंने दावा किया कि उत्तराखंड के दून स्कूलों में पढ़ने वाले कई बच्चों ने एकलव्य विद्यालयों में प्रवेश लिया है। इस अवसर पर मंत्रालय में राज्यमंत्री सुदर्शन भगत और वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद थे। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि सरकार ने कम से कम 20 हजार की आदिवासी आबादी वाले प्रखंड और 50 प्रतिशत आदिवासी आबादी वाले प्रखंड में कम से कम एकलव्य विद्यालय खोलने की योजना को मंजूरी दी है। अब इन विद्यालयों में सामान्य वर्ग के बच्चों को भी प्रवेश किया जाएगा। इसके लिये दस प्रतिशत स्थान सामान्य वर्ग के बच्चों के लिये आरक्षित होंगे। ये स्थान इन विद्यालयों में काम करने वाले कर्मचारियों के बच्चों, वाम उग्रवाद में अपने माता पिता खोने वाले बच्चों, विधवा के बच्चों और दिव्यांग माता पिता के बच्चों के लिए आरक्षित होंगे।
एकलव्य आदर्श विद्यालय आदिवासी बहुल इलाकों में बनायें जा रहे हैं और इनमें आदिवासी बच्चों को कक्षा छह से 12 कक्षा तक शिक्षा दी जाती है। ये विद्यालय आवासीय और सामान्य होते है। इन विद्यालयों के पढ़ने वाले बच्चों का पूरा व्यय सरकार वहन करती है। फिलहाल 284 विद्यालयों को मंजूरी दी गयी है और इनमें से 219 बन चुके हैं। इसके अलावा सरकार ने वर्ष 2012-22 तक और 462 एकलव्य विद्यालय बनाने की योजना को मंजूरी दी है। ओराम ने कहा कि 462 एकलव्य विद्यालय बनाने के लिये वित्त वर्ष 2018-19 और वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान2242.03 करोड़ रुपये की वित्तीय लागत को मंजूरी दी है।