बिहार में सरकार से बाहर की एक ‘अदृश्य शक्ति’ ने स्वाइन फ्लू के मरीज के साथ घोर लापरवाही बरतने वाले एक बड़े अफसर को निलंबित होने से बचा लिया है. यह बाहरी हस्तक्षेप नीतीश के गवर्नेंस में नया ट्रेंड माना जा रहा है.
दानिश रिजवान की खास रिपोर्ट
नीतीश सरकार में यह बाहरी हस्तक्षेप का पहला नमूना माना जा रहा है.
खबर तो यहां तक है कि आरा सदर अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ. जैनेंद्र कुमार सिन्हा के खिलाफ कार्रवाई करने की अंतिम मुहर टॉप लेवल के ब्यूरोक्रट के द्वारा लगाने की पूरी तैयारी की जा चुकी थी. इसी बीच सरकारी के बाहर की उस ‘अदृश्य शक्ति’ ने अपना जलवा दिखाया. नतीजा यह हुआ कि बिहार सरकार में इतना साहस ही नहीं हुआ कि डॉ जैनेंद्र कुमार सिन्हा के खिलाफ कोई कार्रवाई कर सके.
सूत्र बताते हैं कि डा जैनेंद्र की पहुंच उस अदृश्य शक्ति तक है.
क्या है मामला
1 मार्च 2015 को भोजपुर ज़िले के जगदीशपुर अनुमंडल अस्पताल में श्रीमती अमीषा भार्ती और उनकी पुत्री सुहानी के जांच में घातक बीमारी स्वाइन फ्लू का पता चला. आनन फानन में इन दोने मां-बेटी को आरा सदर अस्पताल में भर्ती करवाया गया. पर सूत्र बताते हैं कि अस्पताल उपाधीक्षक डॉ जैनेन्द्र कुमार सिन्हा ने अपनी मनमर्ज़ी से उक्त रोगी को आरा सदर अस्पताल से पटना रेफर कर दिया. यानी मरीज को मौका दिया गया कि वह अपनी सहूलत से पीएमसीच चला जाये. चूंकि स्वाइन फ्लू एक महामारी के लक्षण वाली बीमारी है और मरीज दूसरे के सम्पर्क में आने से इस बीमारी को दूसरे लोगों तक पहुंचने की संभावना है इसलिए राज्य सरकार का निर्देश है कि ऐसे मरीजों को कहीं न भेजा जाये, बल्कि उसी अस्पताल में दवा-इलाज कराया जाये. इसके लिए राज्य सरकार ने यह भी घोषणा की है कि हर जिला अस्पताल में जरूरी दवायें पहुंचायी जायें.
लेकिन आरा सदर अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ जैनेन्द्र कुमार सिन्हा ने दोनों मरीजों को खुद डाक्टरों की देख रेख में लेने के बजाये उन्हें पटना जाने को कह दिया जो इस घातक बीमारी के, और लोगों तक फैलने की संभावनाओं को बढ़ाता है.
तो ऐसे बचे निलंबन से
इसलिए डा. जैनेंद्र के इस कदम को आला हाकिमों ने घोर लापरवाही माना. इस मामले में भोजपुर जिलाधिकारी और बिहार के मुख्य सचिव अंजनी सिंह का सख्त निर्देश भी है की स्वाइन फ्लू के रोगी को ऐसे ना छोड़ा जाए. इसलिए स्वस्थ विभाग के प्रधान सचिव ब्रजेश मेहरोत्रा ने इस बाबत अस्पताल उपाधीक्षक पर करवाई करने के लिए जिलाधिकारी भोजपुर और सिविल सर्जन भोजपुर से रिपोर्ट की मांग की. इस निर्देश का पालन करते हुए दोनों पदाधिकारियों ने रिपोर्ट भी भेज दी पर अभी तक उक्त पदाधिकारी पर कोई करवाई नहीं हुई.
मुख्यमंत्री सचिवालय के सूत्र बताते हैं की इस मामले को लेकर एक गैर जद यू नेता की बिहार सरकार के एक पावरफुल नेता से बात की और कहा कि कहा था की कुछ भी हो जाए डॉ जैनेन्द्र पर करवाई नहीं होनी चाहिए.हुआ भी ऐसा ही. लाख दोष होने के बावजूद डॉ साहब के सर पर एक अदृश्य शक्ति की मेहरबानी काम आ गयी.
गौर तलब है कि कुछ लोग इसे मांझी सरकार के पतन के बाद बनी नीतीश सरकार में बाहरी दखल के रूप में देख रहे हैं.