तेजस्वी यादव ने राजनीति  के फलक पर अगले चालीस वर्षों तक छाये रहने की दीर्घकालिक योजना बनायी है. पद संभालने के बाद पहले साक्षात्कार में उन्होंने भावी राजनीति पर हमारे सम्पादक इर्शादुल हक से खुल कर चर्चा की.

सियासत के आसमान पर नजर
सियासत के आसमान पर नजर

20 नम्बर को शपथग्रहण समारोह के बाद नीतीश कुमार ने एक टी पार्टी आयोजित की थी. शाम का अंधेरा गहरा हो चुका था. नीतीश के आवास के बाहर सन्नाटा छा चुका था. वहीं लालू प्रसाद के आवास के बाहर हजारों की भीड़ दरवाजा खुलने का इंतजार कर रही थी. दरवाजा खुलाता है, एक हजार से ज्यादा लोग प्रवेश पाने की आकुलता में गिरते-पड़ते अंदर दाखिल होते हैं. दरवाजे की दायीं तरफ कार्यालय के बरामदे में लालू खड़े हैं. बाये हाथ पर नवनियुक्त उपमुख्यमंत्री तेजस्वी हैं. एक-एक आगंतुक की बधाइयां दोनों स्वीकार करते हैं. यह सिलसिला ढाई घंटे चलता है. अपनी तरह का यह पहला दृश्य है जहां लालू के साथ बधाइयां स्वीकार करने वाले के रूप में तेजस्वी भी हैं. तेजस्वी लगातार अपनी मासूम मुस्कुराहट के साथ सबसे आई कॉंटेक्टकरते हैं और हाथ भी मिलाते हैं.ऐसा लग रहा है जैसे लालू, तेजस्वी को लीडरिशिप ओरियेंटेशन का आखिरी पाठ सिखा रहे हैं. रात के दस बज चुके हैं. दिन भर की थकान के बावजूद भीड़ से अकुला जाने की कहीं से कोई रेखा न तो लालू के माथे पर परिलक्षित हो रही है और न ही तेजस्वी के. पर यह सवाल बार-बार पूछा जाता है और पूछा जाता रहेगा कि लालू के नायकत्व का कितना अंश तेजस्वी को प्राप्त हो सकेगा. नीतीश के घर के सामने का सन्नाटा और लालू के आवास में आमजन की भेड़ियाधसान भीड़, लालू-नीतीश के नेतृत्व शैली की अलग-अलग पहचान भले ही हों पर लालू की यह शैली उनकी जनप्रियता को प्रमाणित करती है.

तेजस्वी के तेज का सवाल

तो क्या ऐसी जनप्रियता तेजस्वी के हिस्से में कभी आयेगी? इस सवाल का जवाब फिलहाल कोई नहीं दे सकता. तेजस्वी भी नहीं. तेजस्वी कहते हैं  “पापाजी( लालू प्रसाद) राजनीतिक चिंतन के संस्थान हैं. सामाजिक न्याय के आदर्श. उन जैसा बनने की कामना किसे न होगी. पर उनके पासंग में भी हो जाऊं तो यह मेरा सौभाग्य होगा. पर मैं उनके पदचिन्हों पर निकल पड़ा हूं. अपनी पूरी ऊर्जा, पूरी योग्यता समाज सेवा को समर्पित है अब”.

लालू व तेजस्वी युग का फर्क

कोई तीन साल पहले जब तेजस्वी सक्रिय राजनीति में कूदे थे तो मैंने साक्षात्कार लिया था. तबके तेजस्वी और आज के तेजस्वी का सबसे बड़ा फर्क आत्मविश्वास का है. वह भीड़ से इंटरएक्शन की बारीकियों को समझ चुके हैं. आम जन को प्रभावित करने की कला जान चुके हैं. रही बात सांगठनिक क्षमता की, जो सफल नेतृत्व का सबसे मजबूत पक्ष माना जाता है, तो इसे जानने के लिए हमने यह सवाल तेजस्वी की कोर टीम के खास मेम्बर संजय यादव से पूछ डाला. संजय कहते हैं कि “तेजस्वी जी के सामने राजनीत का एक लम्बा सफर है-कोई चार-पांच दशक लम्बा. उनकी नजर मौजूदा राजनीत से ज्यादा, भविष्य पर है. 2025 के राजनीतिक परिदृश्य पर वह मंथन करते हैं, इस कल्पना के साथ कि जब गांव का हर युवा इंटरनेट से जुड़ा होगा. और तब सोशल मीडिया की भूमिका और महत्वपूर्ण हो चुकी होगी. ऐसे में सामाजिक न्याय की जंग का अलग स्वरूप होगा. वह भविष्य की राजनीति की तैयारी इसी दृष्टिकोण से कर रहे हैं”.

खड़ी होगी दो हजार इंटेलेक्चुअल्स की फौज

इसी मामले पर तेजस्वी कहते हैं “हम फासिस्ट ताकतों के प्रोपगंडा का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए दो हजार से ज्यादा इंटेलेक्चुअल्स की फौज खड़ी करेंगे”. इस बड़ी टीम की तैयारी के लिए बौद्धिक और तकनीकी दक्षता का बाजाब्ता प्रशिक्षण केंद्र होगा. तेजस्वी जब यह बात कहते हैं तो राजनीति के लालू युग और तेजस्वी युग का फर्क साफ दिख जाता है.

 

संगठन के जमीनी स्तर पर तेजस्वी की भावी योजनायें भी चौंकाने वाली है. उन्होंने युवाओं को लक्षित किया है. ऐसे युवा जो 2020 और उसके बाद की राजनीति के तारणहार बनेंगे. प्रखंड और पंचायत स्तर तक के राष्ट्रीय जनता दल के एक-एक पदाधिकारी और कार्यकर्ता का डेटा उनके मोबाइल के फिंगर क्लिक के फासले पर होगा. इसी लिहाज से संगठन को सुदृढ़ और डॉयनामिक किया जायेगा. पर सवाल यह है कि सत्ताधारी पार्टी की सबसे बड़ी चुनौती संगठन को सक्रिय बनाये रखने की होती है. क्योंकि उसे विरोध की राजनीति के बजाये सरकार के पक्ष की राजनीति करनी होती है. इस सवाल का जवाब भी तेजस्वी के पास है. वह कहते हैं “हम इसी बात के मद्देनजर कुछ योजनओं पर भी काम कर रहे हैं. आने वाले समय में संगठन की सक्रियता और गतिविधि का रोडमैप तैयार हो रहा है. हमारा मकसद सिर्फ चुनावी राजनीति नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन के अलख को मजबूत करना भी है. संगठन की सक्रीयता के लिए प्रशिक्षण के साथ- साथ मुद्दा आधारित रणनीति भी जल्द सामने आयेगी”.

लालू के साये से निकले की चुनौती

तेजस्वी यादव के राजनीतिक सफर में बाहरी चुनौतियों के अलावा खुद अपने व्यक्तित्व की चुनौती है. लालू प्रसाद के पुत्र होने की चुनौती. लालू की विराट छवि से अलग अपनी छवि गढ़ने और स्थापित करने की चुनौती. इस बात का तेजस्वी को बखूबी एहसास है. वह अभी जहां पहुंचे हैं उसमें लालू प्रसाद नामक विराट वृक्ष का साया है. आगे का सफर उन्हें खुद तय करना है. तेजस्वी कहते हैं. “पापाजी एक व्यक्ति नहीं बल्कि संस्थान है, एक विचारधारा हैं. लोहिया और कर्पूरी की धारा के बाद लालूवाद की यह धारा हमारी राजनीति की प्रेरणा है.हम उनकी साया से अलग नहीं हो सकते, कभी नहीं. हमारे जीवन का एक-एक पल उनसे सीखते हुए गुजरा है. परिवार में दो-दो मुख्यमंत्रियों की गोद में रहते हुए राजनीत को सीखना, ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज युनवर्सिटी की शिक्षा से भी बड़ी डिग्री लेने के समान है. ऐसे में लालूजी और राबड़ी जी के पॉलिटिकल आइडियालॉजी को हम आगे ले कर चलेंगे, हमें विश्वास है, खूब विश्वास है”.

आलोचकों को जवाब

तेजस्वी राजनीति के सफर में भले ही जिस मुकाम पर पहुंचें. पर यह सवाल बार बार पूछा जायेगा कि उनके आलोचक उनको सोने की कटोरी लिए पैदा होने से जोड़ते हैं ? तेजस्वी इस सवाल के जवाब में कहते हैं- कुछ सवालों के जवाब समय-काल पर छोड़िये. समय सब तय कर देगा. जहां तक आलोचकों की बात है तो देश में महात्मा गांधी के भी आलोचक हैं. मैं तो एक साधारण इंसान हूं.

28 नवम्बर को पढिये शासन-प्रशासन की क्या है भावी योजना

By Editor

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