नौकरशाही डॉट इन को पता चला है कि लालू-नीतीश चुनाव में मुसलमानों को टिकट देने में केजरीवाल फार्मुला अपनायेंगे. यानी मुसलमान का वोट तो लो पर उन्हें आबादी के अनुरूप टिकट नहीं दो.
इर्शादुल हक, सम्पादक नौकरशाही डॉट इन
राजनीति के गलियारे में यह बात जोरदार चर्चा का विषय है. चर्चा यह है कि लालू और नीतीश मिल कर भाजपा के रथ को रोकना तो चाहते हैं और उन्हें यह समझ है कि मुसलमान भाजपा को हराने के लिए उन्हें एक मुस्त वोट करेंगे क्योंकि उनके पास दूसरा कोई विकल्प नहीं है.
नौकरशाही डॉट इन को एक सूत्र ने बताया है कि मुसलमानों के एक ग्रूप ने नीतीश कुमार से मिल कर अनौपचारिक बातचीत के दौरान जब यह मांग रखी कि मुसलमानों को उनकी आबादी के अनुसार विधानसभा चुनाव में टिकट दिया जाये. तो इसके जवाब में नीतीश ने कहा कि मुसलमान उम्मीदवार खड़ा करने पर, बहुत वोटर (हिंदू मतदाता) उन्हें वोट नहीं करेंगे. सूत्र के अनुसार नीतीश ने आगे कहा कि जिन विधानसभा क्षेत्रों में मुसलमानों की बड़ी आबादी है वहां विभिन्न पार्टियों या निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में कई मुस्लिम उम्मीदवार खड़े हो जाते हैं जिस कारण मुसलमानों का वोट बंट जाने का खतरा है जिसके कारण भाजपा उम्मीदवार जीत सकता है.
मुसलमानों में निराशा
नीतीश कुमार के इस जवाब से मुस्लिमों के प्रतिनिधिमंडल को काफी निराशा हुई है.
गौरतलब है कि दिल्ली के असेम्बली चुनाव के दौरान अरिविंद केजरीवाल का एक गुप्त ऑडियो सामने आया था जिसमें वह कहते हुए सुने गये थे कि अगर पार्टी के कुछ लोग सोचते हैं कि आम आदमी पार्टी 11 मुसलमानों को टिकट देगी तो वे यह बात भूल जायें. आज मुसलमानों की प्राथमिकता मोदी के रथ को रोकने की है. कांग्रेस खत्म हो चुकी है. मुसलमान आम आदमी पार्टी को जीतते देखना चाहते हैं. उनकी प्राथमिकता मुस्लिम कंडिडेट्स में नहीं है.
इस ऑडियो के सामने आने के बाद केजरीवाल की मुस्लिम वोटो के प्रति मंशा पर काफी आलोचना हुई थी.
लेकिन इधर बिहार के प्रस्तावित चुनाव में जो हालात बनते जा रहे हैं और जिस तरह के संकेत मिल रहे हैं उससे दिखने लगा है कि लालू प्रसाद और नीतीश कुमार का गठबंधन भी केजरीवाल फार्मुले पर काम कर रहा है.
विधान पिरषद चुनाव में टरका चुके हैं लालू
उधर लालू प्रसाद के राष्ट्रीय जनता दल ने तो विधान परिषद चुनाव में ही यह साबित कर दिया है कि मुसलमानों को उम्मीदवार घोषित करने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है. हाल ही में विधान परिषद की स्थानीय निकायों के कोटे से हुए चुनाव में राजद ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार खड़ा नहीं किया था. राजद ने दस उम्मीदवार खड़े किये थे.
ध्यान रहे कि बिहार में मुसलमानों का 17 प्रतिशत वोट है. वोटर समूह के रूप में मुसलमानों की आबादी सबसे बड़ी है. यह आबादी यादव मतदाता से भी पांच प्रतिशत अधिक है. इतना ही नहीं राज्य में विधानसभा की 50 ऐसी सीटें हैं जहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या निर्णायक है.