आदरणीय प्रधानमंत्री! दस महीने की सरकार के दौरान आपको आखिर मुसलमानों की याद आ ही गई। अभी कुछ दिन पहले (6अप्रैल 2015) को आपने एक मुस्लिम प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की और आतंकवाद के मुद्दे पर चर्चा की। बातचीत में मुसलमानों की समस्या से अधिक मुस्लिम युवाओं की बात उठाई गई, जो कट्टरपसन्द हैं और इस देश के लोकतंत्र के लिए खतरा हैं। अब मुसलमान आपकी सरकार में तीन तरह के हो गए हैं- अच्छे, बुरे और ‘‘ज़फर सुरेश वाला के मुसलमान’’। आपसे मिलने वाले ऐसे मुसलमान थे, जो आपसे मुलाकात के बाद जादूगर के जादू की तरह मीडिया से मिले बिना ही उड़न छू हो गए।
तबस्सुम फ़ातिमा
अभी कुछ दिन पहले जब आपके चहेते जफर सुरेश वाला एक मिल्ली बैठक में मुसलमानों के बीच जबरदस्ती पहुंच गये तो उन्हें बैठक से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। सरकार के दस महीने बाद ही मुसलमानों से मिलने की चिंता आपको सताने लगी। सवाल है कि आखिर आप मुसलमानों से क्यों मिलना चाहते हैं? और जिन लोगों से मुसलमानों के नाम पर मिल रहे हैं, क्या वह वास्तव में मुसलमान हैं या आपके ही लोग हैं? ऐसे समय में जब आरएसएस भरपूर बहुमत से लाभ उठाकर अपने उद्देश्यों की पूर्ति करना चाहता है और हिंदुत्व को सारे भारत पर थोपना चाहता है, क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि आपके विकास के सभी नारे मुस्लिम दुश्मनी और आरएसएस के भयानक प्रचार के बीच कहीं गुम हो गए हैं? विदेशों में भी आपकी पार्टी की जो छवि उभर कर सामने आ रही है, वह एक सांप्रदायिक पार्टी और मुस्लिम विरोधी छवि भर है और आपकी रहस्यमय चुप्पी आरएसएस के विचारों का पुरजोर समर्थन करती रही है। केवल यही नहीं, आपको याद होगा, गुजरात दंगों के लिए माफी मांगने में आपको बारह साल लग गए। कांग्रेस के भ्रष्टाचार और लोकसभा चुनावों में जीत की उम्मीद नज़र नहीं आती तो शायद आप माफी भी नहीं मांगते। और आपके माफी मांगने के अंदाज में वह बात नहीं थी, जो बारह साल पहले हुए खून के धब्बे को धो सकने में मददगार साबित हो सकती हो। एक लहर थी- आप भरपूर बहुमत के साथ जीत हासिल करके सरकार में आए तो आरएसएस के प्रतिनिधियों और आपके नेताओं ने मुसलमानों के खिलाफ जहरीले बयान का जो सिलसिला शुरू किया, वह अब तक कायम है। प्रधानमंत्री जी! मुझे बताएं, क्या ऐसी स्थिति में मुसलमानों के साथ किसी स्वस्थ संवाद की उम्मीद की जा सकती है?
भय का अहसास
आदरणीय प्रधानमंत्री! संभव है आप को मुसलमानों के अंदर छिपे भय का एहसास नहीं हो। सूर्य पूजा नमस्कार, वंदे मातरम कहना, सलॉटर हाउस बंद करने से लेकर अपमानजनक बयानों तक वह मनोवैज्ञानिक दबाव हैं, जिनसे आज हर मुसलमान दो-चार है। आप न्यायपालिका और न्याय की बातें करते हैं। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों के साथ संवाद करते हैं और हर दिन एक गलत कानून को खत्म करने की बात दोहराते हैं। लेकिन मैं पूछती हूं कि कानून और न्यायपालिका से ऐसी ही सहानुभूति है तो गुजरात के हत्यारों की रिहाई कैसे संभव हुई? हाशिमपुरा के हत्यारे चश्मदीद गवाहों की मौजूदगी के बावजूद रिहा कैसे हो गये? क्या वहां भी गलत कानून काम कर रहे थे? जिन्हें खत्म करने का आपने इरादा कर लिया था? या कानून या न्याय को देश के बहुसंख्यकों को लाभ पहुंचाने के लिए आप सारे रास्ते आसान कर रहे हैं। ताकि मासूम निर्दोषों के फर्जी एनकाउंटर के बाद भी आसानी से बचा जा सके? यह कैसा कानून है कि चश्मदीद गवाहों की मौजूदगी के बावजूद हाशिमपुरा के अपराधी, गुजरात के हत्यारे और बंजारा जैसे लोग आज़ाद हो जाते हैं। सरकार होली, दशहरा, दीवाली के अवसर पर अवकाश को रद्द नहीं कर सकती, लेकिन गुड फ्राइडे के मौके पर मुख्य न्यायाधीशों की आयोजित की गई वार्षिक सम्मेलन में जस्टिस कोरयन जौसफ के शामिल न होने पर फिल्म अभिनेता और सांसद परेश रावल द्वारा मज़ाक उड़ाया जाता है। और आप मुसलमानों और अल्पसंख्यकों के मुफ्त तमाशे के गवाह बन जाते हैं।
धार्मिक पूर्वाग्रह
गुजरात से शुरू हुई फर्जी एनकाउंटर की कहानी अब तिलंगाना तक पहुंच गयी है। आरएसएस के घर वापसी, बहू लाओ बेटी बचाओ जैसे कार्यक्रम ने धार्मिक पूर्वाग्रहों को चरम पर पहुंचा दिया है। आप मुस्लिम प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात और चर्चा की इच्छा रखते हैं, लेकिन प्रधानमंत्री जी! मैं आपसे पूछती हूं, क्या वास्तव में सच्चर कमेटी, रंगनाथ मिश्रा कमीशन, कंडूर रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल कर आप कैसे मुसलमानों की समस्याओं को सुलझा सकते हैं? क्या सांप्रदायिक सद्भाव, शांति को बढ़ावा देने और अल्पसंख्यकों के संरक्षण दिये बिना चर्चा या संवाद की कोई स्थिति पैदा हो सकती है? और एक महत्वपूर्ण सवाल यह भी है कि अगर आपने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड, जमीअत उलेमा-ए-हिंद, जमाते इस्लामी, जमीअत अहले हदीस, ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस मुशावरत और अन्य मिल्ली दलों से संपर्क नहीं किया तो फिर वह कौन लोग थे, जिनकी मुलाकात को छिपाने की कोशिश की गई? यह कैसी भेंट थी, जहां मुस्लिम प्रतिनिधिमंडल को मीडिया से मिलने नहीं दिया गया?
मुसलमानों से सीधा संवाद
आदरणीय प्रधानमंत्री! यदि आप वास्तव में मुसलमानों से सहानुभूति रखते हैं या उनकी समस्याओं को हल करना चाहते हैं तो सच्चर कमेटी और रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट काफी है, जहां मुसलमानों के कई समस्याओं का समाधान हो सकता है। लेकिन इसके लिए चोरी छिपे तथाकथित मुस्लिम प्रतिनिधिमंडल से मिलने की ज़रुरत नहीं है। इसके लिए किसी ज़फर सुरेश वाला या नजमा हेपतुल्लाह की भी जरूरत नहीं है। यह भारत के तीस करोड़ मुसलमानों की समस्या है और आप बेहतर जानते हैं कि मुसलमानों की अनदेखी करके भविष्य में सत्ता-सिंहासन हासिल करना आसान नहीं होगा। आप मुसलमानों से सीधे संवाद पर आयें। सामाजिक मीडिया में आपसे ज़्यादा किसकी पकड़ है? रेडियो पर ‘मन की बात’ कहने का आपका फार्मूला भी हिट है। आम आदमी से किसानों तक आप अपने मन की बात कह चुके हैं। अब यह मन की बात सीधे मुसलमानों से करें। इससे हमें भी पता चलेगा कि आप हमारे प्रति कितने गंभीर हैं।
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