ऐसे समय में जब देश में कृषि श्रमिकों की अनुपलब्धता एक संकट के रूप में सामने आयी है भारत के महापंजियक के सर्वे में चौंकाने वाले तत्थय सामने आये हैं. भारत के महापंजीयक द्वारा कराई गई एक जनगणना के अनुसार देश में खेतीहर और कृषि श्रमिकों की संख्याे पिछले एक दशक में 2 करोड़ 90 लाख की वृद्धि हुई है.
वर्ष 2001 के 23 करोड़ 41 लाख (12 करोड़ 73 लाख खेतीहर तथा 10 करोड़ 68 लाख कृषि मजदूर) के मुकाबले वर्ष 2011 में बढ़कर 26 करोड़ 30 लाख (11 करोड़ 87 लाख खेतीहर तथा 14 करोड़ 43 लाख कृषि मजदूर) हो गई है.
राज्यलसभा में शुक्रवार को कृषि एवं खाद्य प्रसंस्कतरण उद्योगों के राज्य1 मंत्री तारिक अनवर ने एक लिखित उत्तयर में यह जानकारी दी.
वर्ष 2010-11 की कृषि जनगणना के अनुसार देश की कुल 85 प्रतिशत कृषि योग्यम भूमि में से 44 प्रतिशत पर लघु और सीमांत किसान खेती करते हैं. 2012-13 की भारत ग्रामीण विकास रिपोर्ट में कहा गया है, हालांकि बड़े किसानों के मुकाबले छोटे किसानों ने भूमि और संसाधनों का कहीं बेहतर इस्तेामाल किया है लेकिन अकसर उनके पास भूमि उनके परिवारों का पालन करने के लिए अपर्याप्तह पड़ जाती है.
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि लघु किसान कम उत्पा दन के चलते विपणन और वितरण के मामले में खासे नुकसान में रहते हैं. लघु किसानों की हालत सुधारने के नजरिए से 12वीं योजना के दस्तानवेज में लघु सीमांत और महिला कृषकों के समूह निर्माण और सामूहिक गति को बढ़ावा देने तथा उनकी क्षमता निर्माण पर विशेष ध्याहन दिया गया है.
रिपोर्ट में निजी निवेश और उनकी ऐसी नीतियों को भी बढ़ावा दिया गया है जिससे बाजार और ज्यादा कुशल और प्रतियोगी बनता हो.