क्य सचमुच कोई है जो सीएम नीतीश कुमार को नष्ट करने, बर्बाद करने पर तुला है? या फिर नीतीश यह कह कर राजनीत के तरकश से कोई और तीर चला रहे हैं?nitish.photo

बीते दिन नीतीश कुमार शराबबंदी संबंधी विध्यक पास होने के बाद दमदार अंदाज में बोले. वह बोले की शराबबंदी लागू करने से कई लोग उनके दुश्मन हो गये है. वे उन्हें नष्ट करने पर तुले हैं. बजाहिर उनका इशारा शराब लॉबीरी की ओर था. लेकिन इसके संदेश कई हलकों में महसूस किये गये. वह विपक्ष की बोलती बंद करना चाह रहे थे. तो शराब की कमाई से अघाये समाज के लोगों को चेतावनी भी देना चाह रहे थे. लेकिन इन सब इशारों के अलावा उनका इशारा खास तौर उस ओर भी था कि  उनकी सरकार रहने तक वह कदम पीछे नहीं खीचने वाले.

 

नीतीश गठबंधन सरकार के मुखिया हैं. गठबंधन का पूरा समर्थन उनके साथ है. पर वह यह जताने में नहीं चूके कि शराबबंदी के फैसले पर गठबंधन के अंदर भी कोई समझौता नहीं होने वाला. नीतीश को जानने वाले जानते हैं कि वह कम सियासी शक्ति के बावजूद ताकतवर और मंझे हुए सियासी रहनुमा हैं.

दर असल सशक्त लीडरशिप के महत्वपूर्ण गुणों में एक गुण यह भी है कि वह एक लकीर खीचे और लोग बध्यता से ही सही उस लकीर पर चलने को विवश हो जायें. नीतीश कई बार ऐसे मामलों में अपनी लीडरशिप साबित कर चुके हैं. लेकिन कई बार सेफल नेतृत्व अपनी खीची लकीर पर लोगों को चलवाने में तानाशाही रैवया भी अपना लेता है.

दर असल सशक्त लीडरशिप के महत्वपूर्ण गुणों में एक गुण यह भी है कि वह एक लकीर खीचे और लोग बध्यता से ही सही उस लकीर पर चलने को विवश हो जायें. नीतीश कई बार ऐसे मामलों में अपनी लीडरशिप साबित कर चुके हैं. लेकिन कई बार सेफल नेतृत्व अपनी खीची लकीर पर लोगों को चलवाने में तानाशाही रैवया भी अपना लेता है.

दरअसल शराबबंदी कानून नीतीश कुमार के लिए महज समाजसुधार आंदोलन नहीं है. यह एक बड़ा सियासी हथियार है.इसी सियासी हथियार के बूते वह 2019 तक की राजनीति की दिशा तय कर चुके हैं. और अब जैसे हालात बनते जा रहे हैं उससे यह लगने लगा है कि वह खुद भी शराबबंदी की सियासत से पीछे नहीं हो पायेंगे. गौर करें कि जब भी शराबबंदी पर बात होती है तो उनका निशाना सीधा नरेंद्र मोदी होते हैं. सदन में उन्होंने दोहराया भी कि शराबबंदी पर संघ प्रमुख मोहन भागवत और पीएम नरेंद्र मोदी अपना स्टैंड क्लियर करें.

दर असल नीतीश को पता है कि राष्ट्रवाद और नैतिकता के नाम पर सियासत करने वाले भाजपा-आरएसएस को घेरने का इससे बढिया हथियार फिलहाल कोई दूसरा नहीं है. सो उन्होंने नरेंद्र मोदी को एक तरह से ललकारा कि गुजरात में दशकों से लागू शराबबंदी को मोदी ने सीएम रहते जारी रखा. इससे पता चलता है कि मोदी खुद शराबबंदी के पक्ष में हैं. अब वह पीएम बन गये हैं तो इस मामले में उन्हें अन्य भाजपाई प्रदेशो में लागू करना चाहिए. लेकिन सच्चाई यह है कि शराबबंदी लागू करने का जोखिम और साहस भाजपा उठायेगी, ऐसा नहीं लगता. ऐसे में अगले तीन सालों तक नीतीश कुमार भाजपा-आरएसएस को शराबबंदी पर अपने तरकश के तीर चलाते रहेंगे.

 

 

By Editor


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