कन्नड़ पत्रिका लंकेश पत्रिके की सम्पादक गौरी लंकेश की हत्या, न सिर्फ अभिव्यक्ति की आजादी की हत्या है बल्कि धर्म और जति के पाखंड के खिलाफ जंग को दबाने की करतूत भी है. उनकी हत्या मंगलवार शाम को उनके घर के सामने कर दी गयी.
वह स्टैबलिशमेंट की खामियों को उजागर करने वाली पत्रकारिता का प्रतीक थीं. वह धर्म की आड़ में राजनीति करने वालों की कलई खोलने का जोखिम उठाती थीं. वह जातिवाद के जहर के खिलाफ आवाज थीं. वह साम्प्रदायिक राजनीति के खिलाफ खुल कर लिखती थीं. वह लंकेश ही थीं जिन्होंने गुलबर्गी की हत्या के खिलाफ जोरदार आवाज उठाई थी. लेकिन उन्हें क्या पता था कि वह खुद भी फासीवादी ताकतों की गोलियों का शिकार बन जायेंगी.
गौरी लंकेश की साहसिक पत्रकारिता का सबसे बड़ा उदाहरण यह था कि वह अपनी साप्ताहिक पत्रिका के लिए कोई विज्ञापन नहीं लेती थीं. इस जोखिम भरे अभियान के लिए वह 50 आम लोगों का सहयोग लेती थीं. अभिव्यक्ति की आजादी के दुश्मनों ने लंकेश की जान ले ली. स्वतंत्र आवाज के खिलाफ देश में बढ़ते खतरे की भेंट चढ़ी लंकेश ने अपनी शहादत दे कर यह साबित किया है कि ऐसे संकट के खिलाफ देश्वायापी अभियान को और मजबूत बनाने की जरूरत है.
सामाजिक समरसता बनाने के लिए शहादत की हमेशा जरूरत रही है. हम लंकेश की शहादत को सलाम करते हैं. नौकरशाही डॉट कॉम लंकेश की शहादत से आहत जरूर है लेकिन ऐसी घटना से हम विचलित होने वाले नहीं हैं. हम लंकेश की कलम की धार से प्रेरणा लेते रहेंगे और सच्चाई की आवाज उठाते रहेंगे.