यह तय हो चुका है कि नीतीश कुमार गुजरात के पटेल आंदोलन में शिरकत करेंगे. वह वहां मोदी हटाओ, देश बचाओ का बिगुल फूकेंगे.
इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम
हार्दिक पटेल द्वारा आयोजित 28 जनवरी को किसान सभा में शामिल हो कर नीतीश, मोदी विरोध की अपनी छवि को मजबूत करने की कोशिश करेंगे. विरोध की उस छवि को जो नोटबंदी पर उनके रुख के चलते थोड़ी कमजोर हो गयी थी.
जब देश का लगभग सारा विपक्ष नोटबंदी के मुद्दे पर पीएम नरेंद्र मोदी को घेरने के लिए सड़क से संसद तक कूद पड़ा तब नीतीश कुमार ने नोटबंदी का समर्थन कर दिया. इस कदम से नीतीश की मोदी विरोध की छवि पर खासा असर पड़ा है.
तब अकेले पड़ गये थे नीतीश
हालत यह हो गयी कि ममता बनर्जी ने बिहार में आ कर नोटबंदी के खिलाफ धरना दिया और नोटबंदी के खिलाफ आंदोलन में शामिल नहीं होने वालों को गद्दार तक कह डाला. ममता के इस बयान को नीतीश कुमार से जोड़ कर देखा गया. हालांकि नोटबंदी मामले में नीतीश की पार्टी के वरिष्ठ नेता शरद यादव ममता के साथ थे. पर जद यू के अध्यक्ष की हैसियत से नीतीश कुमार ने अपने प्रवक्ताओं के माध्यम से बार-बार कहलवाया कि उनकी पार्टी नोटबंदी के फैसले का समर्थन करती है. नीतीश के इस रवैये से खुद उनके घटक देल की दो पार्टियां कांग्रेस और राजद ने काफी असहज महसूस किया था. पर नीतीश कुमार की जुबान से समर्थन की बात निकल गयी तो ऐसे में उनका इस मद्दे से पीछे हटना संभव नहीं था.
नयी रणनीति
लेकिन अब नीतीश कुमार से पटेल आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल ने पटना में उनके आवास पर मुलाकत की है. तय हुआ है कि नीतीश गुजरात के सौराष्ट्र समेत अनेक सभाओं में उनके साथ मंच साझा करेंगे और मोदी हटाओ देश बचाओ का नारा लगायेंगे. स्वाभाविक है नीतीश ने यह फैसला काफी रणनीतिक सूझ-बूझ से उठाया है. हार्दिक गुजरात में भाजपा विरोध के एक मजबूत प्रतीक बन कर उभरे हैं. जो पटेल समाज वर्षों से वहां भाजपा के साथ था, वह अब उससे बिदक चुका है. गुजरात में पटेल न सिर्फ सबसे सशक्त सामाजिक समूह है बल्कि राज्य के इस समाज के सर्वाधिक मुख्यमंत्री भी बने हैं. खुद आनंदी बने पटेल इसी समाज की थीं और मोदी के पीएम बनने के बाद वहां सीएम बनी थीं. लेकिन पटेल आंदोलन की तपिश ऐसी फैली की उन्हें सीएम की कुर्सी तक गंवानी पड़ी. इन आंदोलनों के कारण 23 वर्षीय हार्दिक जेल में भी रहे. लेकिन अब, जब गुजरात का चुनाव सर पर है तो उन्होंने नीतीश से हाथ मिला कर भाजपा और मोदी विरोध का मजबूत विकल्प तैयार करने की कोशिश कर दी है. यहां यह याद रखना होगा कि नोटबंदी के मुद्दे पर सर्वाधिक मुखर रहे नेता अरविंद केजरीवाल भी इस कोशिश में थे कि वह हार्दिक के साथ मिल कर भाजपा को चुनौती दें. लेकिन नीतीश कुमार के साथ साकारात्मक पक्ष यह है कि जातीय ऐतबार से हार्दिक पटेल के लिए वह ज्यादा लाभकारी हैं.
नीतीश ने भी इस बात को बखूबी समझा है कि हार्दिक की लगातार बढ़ती लोकप्रियता के कारण गुजरात में वह खुद के लिए जमीन तलाश सकते हैं. चूंकि 2015 के बिहार विधान सभा चुनाव जीतने के बाद नीतीश ने, मोदी विरोध का खुद को एक मजबूत विक्लप के रूप में पेश किया था. लेकिन नोटबंदी पर उनके रुख के कारण मीडिया के एक हिस्से ने हवा बनायी कि वह मोदी के करीब जा रहे हैं. लेकिन अब समय धीरे-धीरे नोटबंदी के मुद्दे से आगे सरक रहा है. ऐसे में नोटबंदी पर नीतीश की विफल हो चुकी सियासत के लिए पटेल आंदोलन एक नयी खुराक बन कर सामने आ सकता है.