पिछले कुछ महीनों में यह दूसरा सार्वजनिक आयोजन है जिसमें राजद व जद यू के बीच मनमुटाव दिखा है.पहला प्रकाश पर्व और अब बिहार दिवस समारोह.
इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम
सवाल उठाये जा रहे हैं कि इस आयोजन से राजद की तर फर से उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव नदारद रहे. सीएम नीतीश कुमार और गठबंधन की दूसरी सहयोगी कांग्रेस से अशोक चौधरी तो थे. राजद कोटे से अन्य मंत्री भी थे पर उपमुख्यमंत्री का न होना सवाल तो है.
लेकिन इसका कोई औपचारिक जवाब न तो जद यू की तरफ से दिया जा रहा है और न ही राजद की तरफ से. अलबत्ता उपमुख्यमंत्री की तरफ से यह जरूर कहा गया कि उनकी तबियत भारी थी. पर आम तौर पर किसी कार्यक्रम में जाने से गुरेज करना होता है तो ऐसे जवाब दिये जाते हैं.
तो फिर यह हो क्या रहा है?
इस मामले को समझने के लिए कुछ तकनीकी पहलुओं को जानना जरूरी है. नीतीश कुमार के नेतृत्व में चल रही सरकार की गतिविधियों पर जो लोग नजर रखते हैं उन्हें पता है कि किसी आयोजन के लिए नोडल एजेंसी की परिपार्टी पर मजबूती से जोर दिया जाता है. आम तौर पर जो कार्यक्रम जिस विभाग के अधीन आता है उसका आयोजन भी उसी विभाग के द्वारा होता है.
पिछले वर्ष प्रकाश पर्व का आयोजन हुआ था जिसे कला संस्कृति और पर्यटन विभाग ने अंजाम दिया था. ऐसा इसलिए था क्योंकि यह आयोजन धार्मिक तो था ही साथ ही पर्यटन से भी जुड़ा था. लेकिन जहां तक बिहार दिवस के आयोजन का मामला है इसकी शुरुात सबसे पहले युवाओं और छात्रों में बिहार के इतिहास के प्रति जागरूकता के लिए किया गया था. इसलिए इसका आयोजन शिक्षा विभाग ने करना शुरू किया.
लेकिन बीत कुछ सालों में इस आयोजन की भव्यता बढ़ती गयी तो भी इस कार्यक्रम के लिए शिक्षा विभाग ही नोडल एजेंसी के तौर पर काम करता रहा. यानी शिक्षा विभाग इस कार्यक्रम का मेजबान है. पते से इस आयोजन में अगर मुख्यमंत्री शामिल होते हैं और उन्हें अतिथि के तौर पर बुलाया जाता है तो यह उसी विभाग की जिम्मेदारी है कि उपमुख्यमंत्री को भी इस कार्यक्रम में एक अतिथि की तरह बुलाता. पर जो खबरें आ रही हैं उसके अनुसार आमंत्रण पत्र पर तेजस्वी यादव का नाम नहीं था.
ऐसे में यह कैसे संभव है कि तेजस्वी बिन बुलाये मेहमान बनना पसंद करते.
स्वाभाविक था उन्होंने परिपक्वता दिखाते हुए तबियत भारी होने की बात कहके विवाद को बढ़ने से रोका. पर यहां महत्वपूर्ण सवाल यह है कि शिक्षा विभाग ने डिप्टी सीएम को बुलाया क्यों नहीं? इतने बड़े आयोजन में उनको न बुलाये जाने को महज मानवीय भूल कहके खारिज नहीं किया जा सकता.
याद रखना होगा कि मौजूदा नीतीश सरकार तीन दलों के गठबंधन की सरकार है. भले ही सरकार के मुखिया नीतीश कुमार हैं पर इसमें राजद सबसे बड़ी पार्टी है. ऐसे में शिक्षा विभाग का यह कदम राजद को नागवार लगा होगा, इसमें दो राय नहीं. तो अब सवाल यह है कि ऐसी स्थितियां क्यों आ रही हैं?
पिछले कुछ महीनों से गठबंधन के दो घटक दलों- राजद और जद यू के बीच रिश्तों की खटास रह रह कर दिखती रही है. पिछले वर्ष के आखिर में आयोजित प्रकाश पर्व के मुख्य कार्यक्रम में राजद या कांग्रेस के प्रतिनिधि को मंच पर जगह नहीं मिली थी. लालू प्रसाद भी मंच के सामने नीचे फर्श पर बैठे थे. जबकि केंद्रीय मंत्री रामबिलास पासवान मंच पर जगह पाने में सफ रहे थे. उस समय भी मीडिया में विवाद दिखा था. पर लालू प्रसाद ने इस विवाद को कूलडाउन किया था. प्रकाश पर्व के बाद अब बिहार दिवस में राजद-जद यू का आपसी मनमुटाव सतह पर आया है. ऐसे में भाजपा द्वारा इस मामले पर चुस्की लेना स्वाभाविक है. विरोधी दल के नेता सुशील मोदी ने कहा कि बिन बुलाये बिहार दिवस कार्यक्रम में शामिल न हो कर उपमुख्यमंत्री ने अच्छा किया है. मोदी का यह बयान सलाह कम, चुटकी ज्यादा है.
गौर से देखें तो राजद-जदयू के बीच बढ़ती ये रस्साकशी आपसी अविश्वास को इंगित करती है. गठबंधन की सरकार के लिए इस तरह का अविश्वास ठीक नहीं है. पिछले दिनों होली के अवसर पर भी खबर आयी कि लालू-नीतीश आपस में नहीं मिले. हालांकि इन तमाम बातों के बावजूद ऐसा नहीं लगता कि दोनों दलों का आपसी मनमुटाव, रंजिश का रूप लेगा. ऐसा इसलिए कि ऐसे समय में जब भाजपा की यूपी और उत्तराखंड में हुई जीत ने क्षेत्रीय पार्टियों के लिए विक्लप सीमित किया है. और उस चुनाव परिणाम ने इन दलों को यह सोचने पर मजबूर किया है कि वे आपसी गठबंधन को मजबूत करें, विस्तार दें. लिहाजा यह उम्मीद की जा सकती है कि राजद और जदयू का यह मनमुटाव एक सीमा से आग नहीं जा सकता.