एड्स दिवस पर नौकरशाही डॉट इन के लिए इन्तेजारुल हक की की यह खोजी रिपोर्ट पढ़िये जो बता रहे हैं कि इस वर्ष अबतक 3 हजार एआईवी पाजिटिव केस मिले हैं और पूर्वी चम्पारण एड्स का डेंजर जोन बनता जा रहा है.
पूर्वी चम्पारण जिला इन दिनों एड्स के मामले में हाई रिस्क जोन बनता जा रहा है। एड्स के मरीजो की संख्या में लागातार हो रही बृद्धि ने इस जानलेवा बीमारी पर रोक लगाने के लिए काम कर रही एजेंसियों की चुनौतियां बढा दी है। सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि मजदूर वर्ग के लोग सबसे अधिक इस बीमारी में मुबतला है और उनके द्वारा महानगरों से लायी गई यह बीमारी उनकी पत्नियों व होने वाले बच्चों को अधिक परेशान कर रही है।
दिल दहलाने वाले आंकड़े
जानकार बताते है कि पिछले तीन वर्षो में इस बीमारी के प्रकोप में आने वाले मरीजो की संख्या में बेतहाशा बृद्धि हुई है। जिले के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत 26 एआरटी केन्द्रों से प्राप्त आंकड़ों पर अगर गौर करें तो पता चलता है कि यह बीमारी जानकारी व जागरूकता के अभाव में सबसे अधिक फैली है।
वर्ष 2013 में मरीजों की संख्या 2186 थी जबकि वर्ष 2014 में 3000 से अधिक हो गई है। अभी 3051 एड्स के मरीज रजिस्टर्ड हैं जिसमें 1803 पुरूष व 1060 महिलाए हैं। इसके अलावा 100 लड़के व 80 लड़कियां इस बीमारी के चपेट में हैं। 6 किन्नर भी हैं जो इस बीमारी से जूझ रहें हैं। शहर के चिकित्सक व इस बीमारी पर रोक लगाने के लिए विषेष रूप से कार्य रहे है डा. चन्द्र सुभाष बताते हैं कि प्रत्येक माह 50 से 60 इस तरह के नये मामले केन्द्रों पर आते हैं जो एचआईवी पाजेटीव होते हैं। रजिस्टर्ड के अलावा भी बहुत सारे लोग हैं जो अपनी प्रतिष्ठा धुमिल होने की डर से अस्पतालों में नहीं आते। बहुत सारे ऐसे लड़के भी मिले हैं जो एड्स से पीड़ित हैं और जांच मे पाजेटीव पाये गये हैं. लेकिन इसके बावजूद वे अपनी बीमारी को छुपा कर शादी कर रहे हैं.
एड्स पीड़ितों का संगठन
हालांकि इस बीमारी से पीड़ित लोगों के साथ छुआ-छूत नहीं करनी चाहिए और उनके साथ किसी तरह का भेदभाव नहीं होना चाहिए। डा. चन्द्र सुभाष बताते है कि एड्स पीड़ित भी समाज व राष्ट्र की खुशहाली के लिए काम कर सकते हैं बशर्ते कि उन्हें सम्मानजनक व्यवहार मिले।
यहां एक बात और है कि एड्स पीड़ितों का एक मजबूत संगठन भी यहां बन गया है और वे काफी सक्रीय भी है। अगर उनकी देख भाल में स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी थोड़ी सी भी चूक करते हैं तो एक बड़ा आंदोलन खड़ा हो जाता है।
समाज के सभी तबकों को इस बीमारी से बचने के लिए आगे आना होगा और एक बेहतर कार्य योजना तैयार कर जागरूकता फैलानी होगी। जबतक समाज का सभी तबका जागरूक नहीं हो जाता तब तक इस घातक बीमारी पर रोक लगाना संभव नहीं है। डा. सुभाष बताते हैं कि अप्राकृतिक रिलेशनशिप व मल्टीपल संबंध से सबसे अधिक यह बीमारी फैलतीहै।