जनता दल यूनाइटेड के नेतृत्व वाले महागठबंधन और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की चुनावी गणित को बिगाड़ने में लगी समाजवादी पार्टी (सपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) का बिहार में कभी मजबूत जनाधार नहीं रहा और वर्ष 2010 के विधानसभा के चुनाव में तो इन दलों का खाता भी नहीं खुल सका था ।
तीनों दल इस बार भी चुनावी दंगल में अपने-अपने योद्धाओं को उतारने में लगे हैं। सपा और राकांपा सीटों के बंटवारे से नाराज महागठबंधन से नाता तोड़कर अब अलग मोर्चा बनाने की कवायद में लगी हैं। इस मोर्चा में समरस समाज पार्टी को जोड़ने की जहां जुगत बैठायी जा रही है वहीं बसपा एकला चलो की नीति पर चल रही है । दूसरे राज्यों के क्षेत्रीय दलों का बिहार की राजनीति में कभी भी अधिक नहीं दखल नहीं हो सका । वर्ष 2000 से लेकर 2010 के बीच हुए चार विधानसभा के चुनावों के नतीजों को देखने से यह लगता है कि अपने-अपने प्रदेशों में सत्ता संभालने वाली सपा, बसपा और राकांपा दो- चार सीटों को छोड़कर शेष पर अपनी जमानत भी नहीं बचा पायीं। वर्ष 2010 के विधानसभा के चुनाव में इन तीनों दलों का खाता भी नहीं खुल सका। बसपा उत्तर प्रदेश में कई बार सत्ता में रही लेकिन बिहार में इसे कामयाबी नहीं मिल सकी। यही हाल सपा का रहा है। बिहार में सपा की साइकिल की रफ्तार कभी नहीं बढ़ी। विधानसभा के पिछले चार चुनाव में सपा के खाते में कुल छह सीटें ही आयीं।