कल दोपहर में हम हॉकरी कर रहे थे। भाजपा कार्यालय, राजद कार्यालय, जदयू कार्यालय, विधान सभा से लेकर तेजस्वी यादव के दरवाजे तक हर जगह हर कोई विधान परिषद उम्मीदवार की तलाश में जुटा था। किस पार्टी से कौन जा रहा है, सबके मुंह पर एक ही सवाल। टिकट बांटने से बेचने तक की चर्चा।
वीरेंद्र यादव
जदयू कोटे की तीन सीटों में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अलावा दो उम्मीदवारों की जगह बची है तो भाजपा कोटे की तीन सीटों में उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी और स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडये के अलावा एक व्यक्ति की उम्मीद पूरी हो सकती है। नाम को लेकर अलग-अलग अटकल। कोई जाति समीकरण का हवाला दे रहा है तो कोई सामाजिक समीकरण का। राज्य सभा की सभी छह सीटों पर सवर्ण जातियों के कब्जे का टीस अलग दिख रहा है। आशंका यह भी है कि राज्य सभा की तरह विधान परिषद चुनाव में भी सवर्णों का दखल न बढ़ जाये। इस स्तर पर भी गोलबंदी सभी खेमों में दिख रही है।
विधान परिषद में सबसे ‘सुहाना सफर’ राजद का ही है। राजद विधायक दल की नेता राबड़ी देवी का कार्यकाल भी समाप्त हो रहा है। पार्टी में उनके अलावा तीन अन्य कार्यकर्ताओं को मौका मिल सकता है। कांग्रेस कोटे की एक सीट भी राजद के खाते में आयी तो चार लोगों की किस्मत खुल सकती है। राजद के जातीय चरित्र को देखकर माना जा रहा है कि 4 उम्मीदवार में से 2 यादव जाति के होंगे। विधान सभा में राजद के 80 विधायकों में लगभग 40 यादव जाति के ही हैं।
तीनों खेमों में उम्मीदवारों के नाम को लेकर भी चर्चा है। नीतीश कुमार, सुशील मोदी, राबड़ी देवी और मंगल पांडये की वापसी तय है। बाकी सात सीटों के लिए पार्टी का हर कार्यकर्ता अपने को ‘उपयुक्त उम्मीदवार’ मानता है। सबके अपने-अपने दावे। कोई खुल्लम-खुला तो कोई बंद जुबान से। तीनों खेमों के उम्मीदवारों के नामों का खुलासा शुक्रवार के बाद ही संभव है। पर इतना तय हैउम्मीदवारों के चयन में वफादारी से दुकानदारी तक सबका ख्याल रखा जाएगा।