सुस्त नौकरशाही को डायनामिक बनाने के लिए मोदी सरकार ने कुछ इस तरह का खाका तैयार कर लिया है कि अब उन्हें गतिशील होना ही होगा. आखिर क्या है यह नुस्खा?
लालफीताशाही की सुस्त रफ्तार का असर देश के विकास पर पड़ता है. पर नौकरशाही अपने पारम्परिक अंदाज में काम करने से बाज नहीं आती. यही कारण है कि भारत की नौकरशाही विश्व के काहिल नौकरशाही में शुमार की जाती रही है. इतना ही नहीं हॉंगकॉंग स्थित संस्था, ‘पॉलिटिकल एन्ड इकनॉमिक रिस्क कंसलटेंसी’ ने 2012 की अपनी रिपोर्ट में एशियाई देशों में नौकरशाही को एक से 10 तक क्रमबद्ध किया था. इसमें 10 सबसे बुरी स्थिति का सूचक है. भारत को इस 9.21 अंक मिले थे यानी सभी देशों में सबसे कम.
भारत में नौकरशाही की स्थिति वियतनाम, इंडोनेशिया, फ़िलिपीन्स और चीन से भी बदतर है. पर मोदी सरकार ने इसमें नयी धार लाने के लिए कई महत्वपूर्ण उपाय किये हैं.
ऐसे आयेगी जिम्मेदारी
नौकरशाहों को उनके काम के प्रति जिम्मेदार बनाने के लिए मोदी सरकार ने आला सचिवों के लिए फाइलों को निपटाने के साथ ही कैबिनेट से जुड़े नोट और अंतर मंत्रालय विचार-विमर्श के लिए डेडलाइन तय करने का फैसला किया है.
कैबिनेट सचिव अजित सेठ को इस काम पर लगाया गया है. नतीजा यह है कि अंतर मंत्रालय नोट और कैबिनेट से जुड़े मुद्दों पर 15 दिन की मियाद के अंदर ही फैसला करना होगा. अगर कोई मंत्रालय या विभाग इन पंद्रह दिनों की मयाद के भीतर नोट पर अपनी सहमति नहीं देता तो संबंधित मंत्रालय या विभाग आगे की कार्यवाही के लिए स्वतंत्र होगा.
मोदी सरकार के इस फैसले का सीधा मतलब हुआ कि अगर कोई विभाग काम में आनाकानी करता है तो उसका महत्व खुद ही समाप्त हो जायेगा और उन नौकरशाहों की उपयोगिता भी बेमानी हो कर रह जायेगी. इतना ही नहीं इस कवायद के तहत अगर कोई मंत्रालय काम करने में या फैसला लेने में कोताही करता है तो निर्धारित 15 दिनों के भीतर खुद ब खुद यह मान लिया जायेगा कि पीएमओ ने इसे मंजूरी दे दी है.
इतना ही नहीं इस मामले में अगर किसी मंत्रालय का सचिव निश्चित समय सीमा में काम नहीं ककरते या जवाब नहीं देते तो उन्हें कैबिनेट के सामने पेश होकर इसकी वजह बतानी होगी.
सचिवालय का कहना है कि इस कवायद का असली मकसद फैसला लेने की प्रक्रिया में तेजी लाना है.
इन तमाम प्रक्रियओं के बाद पीएमओ तमाम मंत्रालयों की प्रगति पर नजर रखेगा इसके लिए तमाम मंत्रालय अपनी फाइलों को पीएमओ को भेजना होगा.
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