यहपुलिस की बेपरवाही, बेचारगी की हद है। गवाही भी कि पुलिस से आम लोग कितने सुरक्षित हैं? एसपी के.सी. सुरेंद्र बाबू हत्याकांड का मसला ऐसे ढेर सारे सवाल बनाता है।
दैनिक भास्कर की खबर
सुरेंद्र बाबू, मुंगेर के एसपी थे। पांच जनवरी, 2005 को नक्सलियों ने उनको बारूदी सुरंग विस्फोट में उड़ा दिया। साथ में पांच पुलिसकर्मी भी शहीद हुए। यह सब भीम बांध के पास हुआ। 9 साल बाद भी एसपी के हत्यारे सजा नहीं पा सके हैं।
गवाहों, जिनमें अधिकतर पुलिस वाले ही थे, के मुकरने से मुंगेर के प्रथम न्यायिक दंडाधिकारी ने तीन आरोपियों (राज कुमार दास, भोला ठाकुर, मंगल राय) को बरी कर दिया। यह पांच वर्ष ट्रायल चलने के बाद हुआ। पुलिस, एसपी हत्याकांड में इन आरोपियों का हाथ साबित करने में विफल रही। पुलिस की भारी फजीहत हुई। उसने फरवरी, 2011 में इस केस को दोबारा खोलने का आग्रह सीजेएम (मुंगेर) से किया।
पर नहीं ले सकी है। एसपी हत्याकांड में कार्रवाई को आगे बढ़ाने को इनका रिमांड बेहद जरूरी है। स्पीडी ट्रायल से दुनिया भर वाहवाही बटोरने वाली बिहार पुलिस ने इस मामले के स्पीडी ट्रायल की व्यवस्था नहीं की है।