एक जमाने में नीतीश ठेके पर बहाली के फार्मुले के कायल थे, लेकिन अब वह वैसे नौकरशाहों पर खुन्नस उतारने लगते हैं जो भूल कर भी ‘ठेका या संविदा ’ शब्द का उच्चारण कर दे. पढिये नौकरशाहों पर नीतीश का खुन्नस.
नौकरशाही डेस्क
बीते रोज एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग के एक नौकरशाह के उस प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया जिसके तहत स्वच्छता दूत की बहाली ठेके या संविदा पर किये जाने का प्रस्ताव था. ठेके या संविदा पर बहाली के नाम से नीतीश कुमार के खुन्नस की तीव्रता का अंदाजा इसे से लगाया जा सकता है कि उन्होंने स्वच्छता दूत की बहाली की बात पर यहां तक कह दिया कि अगर इस काम पर किसी को लगाना है तो अफसर {नौकरशाह} को लगाया जाये.
दर असल नीतीश कुमार के दस वर्ष पुरानी सरकार का सबसे बड़ा सरदर्द ठेके पर बहाल किये गये शिक्षक बन चुके हैं. संविदा पर बिहार में लगभग साढ़े चार लाख शिक्षक बहाल किये जा चुके हैं. और ये शिक्षक नियमित वेतमान के लिए अकसर आंदोलन करते रहते हैं. साढ़े चार लाख शिक्षकों को नियमित वेतनमान देना राज्य सरकार के लिए न सिर्फ गंभीर चनौती है बल्कि अब यह एक राजनीतिक एजेंडा का रूप ले चुका है.
संविदा शिक्षकों से जले होंठ
माना जाता है कि संविदा पर कम मानदेय पर बहाल करने का फार्मुला एक तत्कालीन वरिष्ठ नौकरशाह ने ही नीतीश कुमार को दी थी. वह नौकरशाह अब इस दुनिया में नहीं हैं. तब बिहार सरकार को शिक्षा के स्तर को ऊंचा करना और ज्यादा से ज्यादा शिक्षकों को बहाल करके शिक्षा के दायरे में बच्चों को लाना था. सो उस समय नीतीश ने इस फार्मुले को दमदार समझा था. लेकिन पिछले 5-6 वर्षों में संविदा शिक्षकों ने परमानेंट नौकरी और वेतनमान के लिए जिस तरह पूरे राज्य में आंदोलन चलाया और नतीश सरकार के खिलाफ मोर्चाबंदी की, इससे सरकार के होंठ जल चुके हैं.
इस लिए नीतीश को संविदा नाम से कितनी चिढ़ हो चुकी है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मंगलवार को उन्होंने इस मामले पर यहां तक कह डाला कि स्वच्छता दूत की बहाली ठेके पर नहीं होगी. वरना ये लोग गांधी मैदान में इकट्ठा हो जायेंगे. उन्होंने कहा कि हमने मानदेय पर कुछ दिनों के लिए बहाली की बात की थी लेकिन जो एक बार बहाल हो जाता है, उनकी सेवा बढ़ती जाती है. नीतीश ऐसे नौकरशाहों से तो और नाराज हो जाते हैं जो संविदा पर बहाली का प्रस्ताव ले कर आते हैं. इसलिए उन्होंने साफ कह रखा है कि संविदा पर बहाली? ना बाबा ना.