अरुण माहेश्वरी इस संक्षिप्त टिप्पणी में बता रहे हैं कि गणतंत्र दिवस पर ओबामा को बुला कर मोदी ने जो कूटनीति चली है उस से कुछ लोग मुगालते में हैं. पाकिस्तान इस मामले में भारत पर भारी साबित हुआ. कैसे?
सबसे पहले प्रधानमंत्री ने ट्वीट करके दुनिया को ओबामा को भेजे गये निमंत्रण के बारे में बताया । अमेरिका इस पर कोई प्रतिक्रिया दे, उसके पहले ओबामा ने अपने सैनिक जेट विमान से ही नवाज़ शरीफ़ को फ़ोन करके उन्हें आश्वस्त किया ।
इसके साथ ही चीन ने पाकिस्तान में 45.6 बिलियन डालर के निवेश की घोषणा कर दी। पाकिस्तान की अर्थ-व्यवस्था के आकार को देखते हुए यह भारत में 200 बिलियन डालर के निवेश के बराबर पड़ता है । इसके अलावा भारत की आज़ादी के बाद के अब तक के इतिहास में पहली बार रूस ने पाकिस्तान के साथ सैनिक सहयोग की संधि की है ।
अब आप ही कहिये, कूटनैतिक मामलों में कौन इक्कीस साबित हो रहा है ।
पाकिस्तान-पाकिस्तान का रोना जितना बढ़ेगा, उसे सबक़ सिखाने का जितना तेवर दिखाया जायेगा, दुनिया में भारत का अलग-थलगपन सीधे उसी अनुपात में बढ़ता जायेगा । मोदी का भारत दुनिया की नज़रों में विश्वसनीय नहीं है, जबकि पाकिस्तान आज भी अमेरिका की कथित ‘आतंकवाद-विरोधी’ मुहिम का सहयोगी है ।
भारत की अदालतों में हेराफेरी जितनी संभव है, विश्व समुदाय की अदालत में उतनी ही मुश्किल । कूटनीति में सचाई से बड़ा दूसरा कोई अस्त्र नहीं होता और मोदी जी को इसी मामले में अपनी विश्वसनीयता क़ायम करनी है ।
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