रविवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पत्रकारों के लिए नाश्ते का ‘उत्तम’ प्रबंध किया था। ‘गरिष्ठ नाश्ते’ के लिए वरिष्ठ पत्रकारों को बुलाया गया था। सूचना हमें भी थी। लेकिन बच्चों ने चिडि़याखाना घुमाने की जिद कर दी। इस कारण ‘विकास का नाश्ता’ छूट गया।
वीरेंद्र यादव, बिहार ब्यूरो प्रमुख
चिडि़याखाने में बच्चों की धमा-चौकड़ी में ही शाम हो गयी। हमने सोमवार को सुबह –सुबह ‘ब्रेक फास्ट विद सीएम’ की खबर पढ़ी। हम खबरों में ‘नाश्ते का मीनू’ खोज रहे थे, लेकिन खबरों में सिर्फ डीएनए, जातिवाद से लेकर विकास तक के ‘वायरस’ नजर आ रहे थे। नाश्ते के साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि ‘बढ़ चला बिहार’ अभियान की आज पूर्णाहुति हो गयी। सूचना एवं जनसंपर्क मंत्री विजय चौधरी से लेकर सचिव प्रत्यय अमृत तक सभी गदगद।
दो घंटे का नाश्ता
करीब दो घंटे तक विजन डाक्यूमेंट पर चर्चा हुई। ‘विजन’ को तलाशने के लिए ठेकेदारों की पूरी टोली 40 हजार में गावों (सरकारी दावा) में गयी, लेकिन नाश्ते के साथ विजन पर कोई चर्चा नहीं हुई। इस अभियान के खर्चे पर भी कोई बात नहीं हुई। खर्चे की बात उठी भी तो नाश्ते के बोझ तले दब गयी। इस बेहिसाबी अभियान (‘बढ़ चला बिहार’ अभियान के खर्चे का हिसाब न इसके ठेकेदार के पास है और न सरकार के पास) पर कभी चुनाव आयोग तो कभी हाईकोर्ट का ग्रहण लगता रहा। इसके बावजूद आचार संहिता लागू होने के पूर्व अभियान पूरा हो गया।
उत्सवी शुरुआत का सुस्त समापन
‘बढ़ चला बिहार’ अभियान की शुरुआत गाजे-बाजे के साथ सीएम सचिवालय के संवाद कक्ष में हुई थी। कार्यक्रम का भव्य आयोजन किया गया था। बड़े-बड़े विज्ञापन छापे गए थे। लेकिन समापन चुपके-चुपके कर दिया गया। समापन को लेकर पीआरडी की ओर से कोई विज्ञप्ति तक नहीं जारी की गयी। पत्रकारों को भेजे जाने वाले रुटिन कार्यक्रमों की सूचना में ‘ब्रेकफास्ट विद सीएम’ की चर्चा नहीं थी। पीआरडी ने उस कार्यक्रम की तस्वीर तक जारी नहीं की। सरकारी कार्यक्रम का उत्साहहीन समापन यह बताता है कि नाश्ते के साथ सीएम ने जो दावा किया, उस पर न सरकार को विश्वास था और न पत्रकारों को।
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