मदर्स डे पर पटना हाई कोर्ट की एडवोकेट मंजु शर्मा अपनी मां को याद करते हुए बता रही हैं कि माले के तत्कालीन राज्य सचिव व पिता पवन शर्मा की अनिच्छा के बावजूद उन्होंने कैसे पटना भेज कर मुझे उच्चशिक्षा दिलवायी
मैं जब भी मदर्स डे पर कुछ लिखना चाहती हूं, एक क्रन्तिकारी की पत्नी के दुःख, अपमान और प्रताड़ना भरा जीवन आँखों के सामने आ जाता है। मेरी जुबान रुक जाती है. लेकिन आज इन रूकती और कांपती उँगलियों से ही मैं एक वाक्या बताना चाहूंगी.
मैं मैट्रिक के बाद की पढ़ाई नहीं कर पाती अगर माँ तुम्हारी अदम्य कोशिशें न होती।
मेरे पिताजी{पवन शर्मा} तब अपनी पार्टी के {सीपीआईएमएल} राज्य सचिव हुआ करते थे और पोलिट ब्यूरो सदस्य भी। उन दिनों माले का व्यापक जनाधार पूरे राज्य में फैल चुका था. इनका वश चलता तो सर्वहारा के सत्ता आने पर सारे बच्चों के साथ मुझे भी यह सौभाग्य मिल जाता। वे कहते..हमारी पार्टी के नियम में परिवार को रखना, उसपर ध्यान देना वर्जित है। उनकी नजरों में पूरा सर्वहरा वर्ग ही एक परिवार है.
मेरी कहानी
लेकिन माँ, तुमने मुझे पटना में उच्च शिक्षा प्राप्त करने का अवसर दिया। इस अवसर के प्राप्त करने की एक कहानी है।
1991 में Indian People’s Front की रैली दिल्ली में होनेवाली थी। स्थानीय नेता चंदा के लिए घर आते थे जिससे कार्यक्रम के बारे में पता चलता था। उन्हीं में से एक उर्मिला जी घर पर आयीं थी और रैली में जाने के बहाने माँ ने मुझे भेजा था।
माँ ने मुझे तैयार किया था, हिम्मत दिलाई थी- गाँव से दिल्ली जाने की। ” लौटकर आना मत जबतक पटना में कहीं एडमिशन न हो जाये।”
मैं दिल्ली गयी। लौटकर पटना भी आई। लेकिन कमबख्त दीपावली का त्यौहार आ गया। मेरे पापा जो कभी त्यौहार में (उस समय) घर नही जाते थे; लेकिन उसबार मुझे लेकर चले गए। मैं जाना नहीँ चाहती थी। अपनी भी इच्छा थी पढ़ने की. दूसरी तरफ वापस घर जाने पर माँ का डर था। बोली थी….आई तो घर में नहीँ घुसने देंगें।
लेकिन हम माँ-बेटी हार गए… और पिताजी जीत गए।
कुछ ही दिन बाद फिर महिला संगठन का सम्मलेन पटना में होनेवाला था। फिर माँ ने एक रणनीति बनायी। इस रणनीति के तहत मुझे सम्मेलन के बहाने घर से पटना जाना था. फिरसम्मलेन स्थल तक पहुंच कर फिर उनके गुप्त निवास स्थान सह राज्य कार्यालय पहुंच जाना था. यह जगह पटना के आनन्दपुरी मुहल्ले में थी।
यह मां थी. जिन्होंने मुझे घुट्टी की तरह पिला दिया था कि जो भी नेता उनसे मिलने आए उनसे कहना कि मैं पटना में रहकर पढ़ना चाहती हू। कार्य योजना के तहत मैं एक-एक नेता से मिलने के दौरान मां द्वारा समझाई बातों को रखती. मुझे सुखदेव जी और जमुना अंकल (नंदकिशोर प्रसाद, पूर्व राज्य सचिन, माले) से भी सिफारिश का मौका मिला. नतीजा यह हुआ कि पढ़ाई के प्रति मेरी अभिलाषा का व्यापक असर पड़ा. कार्य योजना ने मूर्त रूप लिया। इस बार की कोशिश सफल हो गयी. इसबार मां जीत गयी. पिताजी को हार मानना पड़ा. और आखिरकार मेरा दाखिला 1991 में पटना कॉलेज में बी.ए में कराया गया.
आज मैं डबल एम.ए हूँ.
मंजू शर्मा सामाजिक आंदोलनों से जुड़ी रहीं. ऑल इंडिया स्टुडेंट्स एसोसिएशन की नेशनल काउंसिल मेम्बर रहीं. फिलहाल पटना हाई कोर्ट में प्रेक्टिस करती हैं. उनसे [email protected] पर सम्पर्क किया जा सकता है
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