यह कहानी उस मासूम बच्ची की है जि मोटरसाइकिल हादसे की शिकार हुई. तय हुआ कि इलाज मोटरसाइकिल चालक करायेगा.इसी बीच पुलि उसे बिन एफआईआर हवालात में डाल देती है और रात भर वहीं रखती है. तबतक पैसे के अभाव में बच्ची मर जाती है. और क्या होता है, पढिये.
दीपक कुमार , मधुबनी से
.मधुबनी जिला के साहरघाट थाना के त्रिमुहान गांव की चार वर्षीया प्रतिभा की मौत आज सुबह चार बजे हो गयी। दरभंगा के मंहगे अस्पताल में इलाज के क्रम में प्रतिभा जिंदगी की जंग हार गयी। तीन दिन पहले रविवार को बैंगरा गांव के मनोज कुमार ठाकुर की बाइक से सड़क पर करते समय प्रतिभा हादसे का शिकार हो गयी थी। बाइक की ठोकर से गंभीर रूप से जख्मी प्रतिभा को बेहतर इलाज के लिए दरभंगा के पारस अस्पताल में एडमिट कराया गया था। यूं तो प्रतिभा की मौत एक हादसा है,लेकिन घटना के बाद साहरघाट के दारोगा प्रेमलाल पासवान की मनमानी भी बहुत हद तक इस मौत की जिम्मेवार मानी जायेगी।
दुर्घटना के बाद बिना किसी एफआईआर के दारोगा ने बाइक चालक को गिरफ्तार कर साहरघाट थाने के हाजत में बन्द कर दिया। उधर इलाज के लिए प्रतिभा के गरीब माँ-बाप दरभंगा के पारस अस्पताल में बेटी की सलामती के लिए डॉक्टरों से गुहार लगाते रही थी। खाली हाथ अस्पताल पहुंचे प्रतिभा के परिजनों की गुहार का डॉक्टरों पर कोई असर नहीं हुआ। बाद में सूचना मिलने पर मनोज के भाई सरोज कुमार ठाकुर ने जैसे-तैसे 15 हजार रुपयो का जुगाड़ कर उसका इलाज शुरू कराया। गंभीर रूप से जख्मी रहने की वजह से 15 हजार रुपये की कहानी महज दो घण्टे में ही खत्म हो गयी। अस्पताल प्रबन्धन ने 22 हजार की पर्ची थमा दी। मनोज के बड़े भाई ने यह कहकर कि उनसे जो बन पड़ा उन्होंने किया,अब इसके आगे इलाज का खर्च मनोज ही वहन कर सकता है।
अस्पताल के आईसीयू में जिंदगी और मौत के बीच झूल रही प्रतिभा पर पैसों के अभाव की काली साया मंडराने लगी। उधर पैसों का प्रबन्ध करनेवाला मनोज साहरघाट थाने के हाजत में बन्द था। वह बार-बार दारोगा से मुक्त करने की गुहार लगाता रहा ताकि वह प्रतिभा के इलाज में आनेवाली पैसों की कमी को बाहर निकलकर जल्द से जल्द दूर कर सके। लेकिन बिना किसी एफआईआर या पीड़ित परिवार के शिकायती पत्र के गैर कानूनी तरीके से हिरासत में रखे गए मनोज को दारोगा मुक्त नहीं किया। बाद में गुस्साए प्रतिभा के परिजन और ग्रामीणों ने थाने पर पहुंचकर मनोज को मुक्त करने का दबाव दारोगा प्रेमलाल पासवान पर बनाया। दबाव बनाये जाने पर उसी दिन रात के लगभग 1 बजे दारोगा ने दोनों पक्षों से लिखित लेकर मनोज को मुक्त किया। मनोज की बातों पर यकीन करें तो दारोगा ने मुक्त करने के एवज में सात हजार रुपये लिए। लगभग 14 घण्टे तक थाने की हिरासत में रहे मनोज ने बाहर आते ही पैसों का जुगाड़ कर अस्पताल को पहुंचाया।
..यहां बड़ा सवाल यह है कि जब मनोज के खिलाफ जख्मी प्रतिभा के परिजनों ने पुलिस से कोई शिकायत नहीं की तो बेवजह गैर कानूनी तरीके से मनोज को 14 घण्टे तक थाने की हिरासत में क्यों रखा गया ? इसके जवाब में थानाध्यक्ष प्रेमलाल पासवान कहते हैं कि मनोज को पूछताछ और सुरक्षा के दृष्टिकोण से थाना लाया गया था। जबकि ग्रामीण दारोगा के इस बयान को सिरे से खारिज करते हैं। ग्रामीणों और प्रतिभा के परिजनों का कहना है कि दुर्घटना के तुरंत बाद ही दोनों पक्षों में इलाज कराने को लेकर लिखित सहमति बन गयी थी। तब दारोगा ने किस आधार पर उसे हिरासत में रखा।इतना ही नहीं,किस बात को लेकर दारोगा को पूछताछ में 14 घण्टे का वक्त लगा?यह किसी को भी परेशान करनेवाला जवाब है। अब जब कि प्रतिभा जिंदगी की जंग हार कर मौत को गले लगा चुकी है,मनोज की हिरासत के 14 घण्टे का जिक्र लाजिमी है।
.गौर करने वाली बात यह है कि जब प्रतिभा के परिजनों ने बेहतर इलाज कराने की शर्त पर घटना के तुरन्त बाद ही मनोज को गिरफ्तार न करने का आग्रह दारोगा प्रेमलाल पासवान से किया था तो फिर मनोज को हिरासत में क्यों रखा गया? इसका जवाब दारोगा अपने बचाव में भले ही जो भी दें लेकिन वह गले से नीचे उतरनेवाली नहीं है। मानवीय दृष्टिकोण से प्रतिभा की मौत के लिए बहुत हद तक दारोग़ा की मनमानी भी जिमेवार है,क्योंकि उसने अगर समय रहते मनोज को हिरासत से मुक्त कर दिया होता तो हो सकता है प्रतिभा की जान बच भी सकती थी। एक तरफ सरकार बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ का नारा दे रही है और दूसरी ओर कानून के रखवाले ही उस कानून की धज्जियां उड़ा रहे हैं। जितनी दिलेरी दारोगा ने बाइक चालक मनोज को हिरासत में लेने में दिखाई उतनी ही दिलेरी अगर एक बेटी को बचाने में दिखाई होती, तो हो सकता था प्रतिभा की जान नहीं जाती। अपनी बेटी को खोने के बाद प्रतिभा के घर वालों का रो-रोकर बुरा हाल है। आखिर उसने अपना बेटी खोया है।