जिस बहुचर्चित हत्या मामले को कई सरकारें 10 वर्षों तक दबाए रहीं, मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी द्वारा उस मामले की सीबीआई जांच कराने की अनुशंसा ने राजनीतिक महकमें में खलबली मचा दी है।
विनायक विजेता
यह मामला है गया के पूर्व सांसद राजेश कुमार की निर्मम हत्या का। चुनाव प्रचार और जनसंपर्क अभियान के दौरान तब के लोजपा प्रत्याशी राजेश कुमार की हत्या 22 जनवरी 2005 को इमामगंज (गया) के डुमरिया थाना अंतर्गत बिकुआ कला गांव के पास कर दी गई थी।
उस वक्त गया के तत्कालीन डीआईजी सुनील कुमार ने इस मामले को नक्सली वारदात करार देते हुए इसे ठंढे बस्ते में डाल दिया था। राजेश कुमार के पुत्र व बोधगया के पूर्व विधायक सर्वजीत अपने पिता की हत्या मामले की जांच सीबीआई से कराने के लिए वर्ष 2006 में पटना हाइकोर्ट में एक अर्जी दायर की जिस अर्जी के आलोक में हाईकोर्ट ने एक स्पेशल कोर्ट बहाल कर इस मामले की जांच व त्वरित निष्पादन का आदेश दिया था पर माननीय न्यायालय के आदेश का भी पालन नहीं हुआ।
उदय नारायण चौधरी की आफत
2 अप्रील 2008 को जब कड़क आईपीएस अधिकारी परेश सक्सेना गया के एसपी बनाए गए तो उन्होंने नव पदस्थापित डीआईजी अरविंद पांडेय के आदेश पर पूर्व सांसद हत्याकांड की जांच नए सिरे से शुरु कर दी। उन्होंने अपनी जो सुपरवीजन रिपोर्ट सरकार को सौंपी वह काफी चौकाने वाली थी पर यह रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हुयी जबकि परेश सक्सेना की रिपोर्ट की तत्कालीन डीआईजी अरविंद पांडेय ने भी अपनी सहमति की मुहर लगा दी थी।
उन्होंने अपनी रिपोर्ट में औरंगाबाद निवासी और पुलिस द्वारा कुछ माह पूर्व गिरफ्तार किए गए कुख्यात माओवादी कालिका यादव के बयान का हवाला देते हुए लिखा कि ‘राजेश कुमार की हत्या कोई नक्सली घटना नहीं बल्कि यह पूर्ण रूप से राजनीतिक हत्या है। उनकी हत्या गया लोकसभा क्षेत्र में उनके बढ़ते प्रभाव के कारण कुछ नक्सली नेताओं को पैसे देकर कराई गई।’
तत्कालीन एसपी परेश सक्सेना ने अपरोक्ष रुप से इस मामले में विधानसभाध्यक्ष उदय नारायण चौधरी की किसी न किसी रूप में भूमिका भी चिन्हित की। यह रिपोर्ट तब जैसे ही सरकार को सौंपी गई तो उदय नारायण चौधरी इतने खफा हुए कि पृतिपक्ष मेले के उद्घाटन के अवसर पर भरे मंच पर ही परेश सक्सेना को तो बेइज्जत किया ही मात्र पांच माह यानी 23 सितम्बर 2008 को उनका गया से तबादला कर उन्हें संटिंग पोस्ट पर डाल दिया गया इसके कुछ माह बाद ही डीआईजी अरविंद पांडेय का भी तबादला कर दिया गया।
बिहार में चल रहे राजनीतिक उठापटक के बीच अब जबकि मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने 10 साल पुराने इस मामले की सीबीआई जांच की अनुशंसा कर दी है तब से कई राजनेताओं की सांसे अटकी हैं।
विधानसभाध्यक्ष उदय नारायण चैधरी पर कुछ लोग यह आरोप लगाते हैं कि कि उनका कई माओवादी नेतोओं से गहरे तालुक्कात हैं. हालांकि इस बात की सच्चाई जांच के बाद ही सामने आ सकती है.