इन दिनों बिहार का कटिहार मेडिकल कॉलेज और इसके चेयरमैन अहमद अशफाक करीम सवालों के घेरे में हैं.पिछले दिनों करीम को प्रश्नपत्र घोटाले के कथित आरोप में गिरफ्तार किया गया था.
इर्शादुल हक, सम्पादक नौकरशाही.इन
प्रश्नपत्र घोटाले के संबंध में अब तक जो बातें सामने आयीं हैं उससे दो बातें स्पष्ट लग रही हैं. पहला, कटिहार मेडिकल कॉलेज के चेयरमैन पैसे बनाने की जुगत में नियमों का उल्लंघन करने में कोई कसर नहीं छोड़ते. और दूसरी बात यह है कि पुलिस भी इस मामले में दूध की धुली नहीं है. और जहां घोटाले की काली कोठरी से पर्दा उठाने के पीछे की मंशा ही सफेद न हो तो ऐसी कार्रवाई का कोई साकारात्मक फल नहीं मिलने वाला. क्योंकि अभी तक जो सूचना सामने आ रही है उससे तो यही लगता है.
एक पुलिस अधिकारी ने नौकरशाही डॉट इन को बताया है कि कटिहार मेडिकल कॉलेज में नामांकन में घोटाले से इनकार नहीं किया जा सकता लेकिन यह बात भी सामने आयी है कि कुछ पुलिस वाले अपने करीबियों का नामांकन मेडिकल कॉलेज में नहीं किये जाने से खिन्न थे. इसलिए वह मौके की ताक में थे. और जैसे ही उन्हें मौका मिला कार्वाई शुरू हो गयी.
इस बीच अनेक संगठनों ने पटना पुलिस पर आरोप लगाया था कि वह इस मामले में दुर्भावना से काम कर रही थी.
नतीजा यह है कि नामांकन घोटाला की जांच कर रहे डीएसपी मनीष कुमार सिन्हा को हटा दिया गया है. उनकी जगह चंद्रशेखर विद्यार्थी इस मामले की जांच करेंगे. विद्यार्थी पुलिस मुख्यालय में डीएपी हैं.
ऐसे में इस पूरे मामले का नतीजा क्या सामने आयेगा इससे न तो कोई उम्मीद की जा सकती है और न ही उससे बहुत फर्क पड़ने वाला है.
अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान
कटिहार मेडिकल कॉलेज की स्थापना 1987 में अलकरीम एजुकेशनल ट्रस्ट ने की थी. यह कॉलेज बीएन मंडल विश्वविद्यालय मधेपुरा से अफिलियेटेड है.कटिहार मेडिलकल कॉलेज एक अल्पसंख्यक मेडिकल कॉलेज है जो अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को मिलने वाली तमाम सरकारी सुविधायें प्राप्त करता है.
लेकिन इस कालेज में आरक्षण नियमों को पालन नहीं किया जाता. मुस्लिम अल्पसंख्यक मेडिकल कालेज होने के नाते इस कालेज को आर्थिक व सामाजिक रूप से कमजोर वर्ग के छात्रों को किसी तरह की कोई प्राथमिकता नहीं दी जाती जबकि आर्थकि रूप से सम्पन्न लोगों के बच्चों से 60-70 लाख रुपये लेकर नामांकन किया जाता.
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आरक्षण घोटाला
संविधान में प्रदत्त अधिकार के तहत अल्पसंख्यक समुदाय में शिक्षा के प्रसार के लिए अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान खोलने का प्रावधान है. बिहार में अनेक अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान हैं पर किसी भी शिक्षण संस्थान में पिछड़े वर्ग के छात्रों के लिए आरक्षण की सुविधा नहीं दी जाती. इस प्रकार आरक्षण नियमों का पालन नहीं करके ये शिक्षण संस्थान नियमों का उल्लंघन करते हैं. इसका नतीजा यह है कि धनाढ़्य वर्ग के लोगों के बच्चे ही कटिहार मेडिकल कॉलेज जैसे शिक्षण संस्थानों में पहुंचते हैं जबकि सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों की वहां कोई पूछ नहीं है.
मंडल कमिशन की सिफारिशें लागू किये जाने के बाद देश के तमाम शिक्षण संस्थानों में पिछड़े वर्ग के छात्रों के लिए आरक्षण का प्रावधान है. अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान इन नियमों की धज्जियां उड़ाते हैं. कटिहार मेडिकल कॉलेज न सिर्फ अपने यहां किसी पिछड़े छात्र का नामांकन करता है बल्कि यह तमाम अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को गोलबंद करके उन्हें प्रेरित करता है कि आरक्षण प्रणाली को वे लागू न करें.
कई बार पसमांद संगठनों ने इस तरह की मांग इन शिक्षण संस्थानों के समक्ष रखी है लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ.
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अब जबकि कटिहार मेडिकल कॉलेज प्रश्नपत्र घोटाले के बहाने सवालों के घेरे में है ऐसे में सरकार को इसमें हस्तक्षेप करने की जरूरत है. क्योंकि यही सही समय है जब अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को मजबूर किया जाये की वह आरक्षण घोटाले में लिप्त संस्थानों को मजबूर किया जाये जिसका फायदा सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े छात्रों को मिल सके.