पटना नगरनिगम के कमिश्नर कुलदीप नारायण को आनन-फानन में निलंबित करके बिहार सरकार ने अदालत से गंभीर टकराव का जखिम ले लिया है. अब अदालत सोमवार को इसे गंभीरता से लेगी. हो सकता है कि इस मामले में सरकार की किरकिरी भी हो.
दर असल पटना हाईकोर्ट ने निगम के कमिश्नर के तबादले पर रोक लगा रखी है. ऐसे में मामला गंभीर हो चुका है.
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कुलदीप के निलंबन के लिए सरकार ने सप्ताहांत का दिन चुना. वो भी शाम के 7 बजे के बाद. जब अदालत आम तौर पर काम नहीं करती. लेकिन निलंबन की बात दो पहर को ही प्रशासनिक और अदालती गलियारे में जंगल की आग की तरह फैल गयी. खबर फैलती है अदालत भी हरकत में आई. पटना हाईकोर्ट में यह सूचना तो मिली लेकिन उस वक्त तकनीकी दिक्कत अदालत के सामने यह रही कि सरकार ने औपचारिक रूप से तब तक निलंबन का नोटिफिकेशन जारी नहीं किया था . लेकिन अदालत के तेवर से यह तभी स्पष्ट ह गया कि वह इस मामले को यूं ही नहीं छोड़ेगी.
अदालत ने कहा भी कि सरकार ऐसा कैसे कर सकती है. यह तो कोर्ट से सीधा टकराव है. इतना ही नहीं कोर्ट ने वकील और अपर महाधिवक्ता राय शिवाजी नाथ से निलबंन के नोटिफिकेशन के बारे में पूछा. अदालत ने पूछा कि नोटिफिकेशन कहां है. चूंकि अदालत जब तक लगी रही तबतक निलंबन का नोटिफिकेशन जारी नहीं किया गया था. इस लिए निगम के वकील ने कहा-अभी नहीं मिला है. इस पर कोर्ट ने कहा-सोमवार को पूरी तैयारी से आइए. कोर्ट ने अपने सख्त तेवर से यह स्पष्ट कर दिया है कि वह इस मामले पर चुप नीं बैठने वाली.
दर असल पटना हाईकोर्ट ने नगरनिगम के कमिश्नर के तबादल पर रोक लगा रखी है. हाईकोर्टके न्यायाधीश न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और विकास जैन की खंडपीठ ने 8 जुलाई, 2013 को कुलदीप नारायण के तबादले पर रोक लगाई थी। कहा था कि बार-बार तबादले से काम पर असर पड़ रहा है. इसलिए कुलदीप नारायण को बिना कोर्ट की अनुमति के नहीं हटाया जाए, ताकि काम में निरंतरता और जवाबदेही बनी रहे.
किसी अखिल भारतीय सेवा के अफसर को यूं ही झटके में निलंबित करने को लेकर कई बार सवाल उठे हैं. कुलदीप पर जो आरोप सरकार ने लगाया है वह मामूली किस्म का है. सरकार का तर्क है कि कुलदीप अकर्मण्य हैं. वह काम में कोताही बरतते हैं.
सरकार के इस फैसले, अदालत के रुख और अखिल भारतीय सेवा के अफसर के निलंबन का यह मुद्दा एक नई बहस को जन्म दे गया है.