चुनाव नतीजे जो भी हों पर भाजपा बुरी तरह भयक्रांत है. उसके अनेक वरिष्ठ नेताओं की नींद उड़ चुकी है. हमारे सम्पादक इर्शादुल हक ने भाजपा के भय के तीन महत्वपर्ण कारणों को जानने की कोशिश की है.

अमित शाह: रातों को जागने की सजा कौन दे गया?
अमित शाह: रातों को जागने की सजा कौन दे गया?

 

एक- आक्रामक वोटिंग से बढ़ा भय

यूं तो भाजपा के लिए एक से चौथे फेज के चुनाव के लिए सबकुछ संतोषजनक नहीं था लेकिन पांचवें और अंतिम चरण की वोटिंग के बाद उसके माथे की चिंता की लकीरें और ही गहरी कर दी हैं.

अंतिम चरण की 57 सीटों के लिए जहां चुनाव हुए हैं वह महागठबंधन का गढ़ है. इस क्षेत्र में मुसलमानों की भारी आबादी है. किशनगंज, पूर्णिया और कटिहार तो ऐसे जिले हैं जहां आधे या आधे से अधिक वोटर मुस्लिम हैं. इसके बाद सर्वाधिक आबादी यादवों की है. खास बात यह है कि सीमांचल जहां मुस्लिम बहुसंख्यक हैं, वहां काफी आक्रामक पोलिंग हुई है. यह पोलिंग 60 से 66 प्रतिशत रही. जबकि अब तक के तमाम फेज में 54-55 प्रतिशत तो वोटिंग हुई. मुस्लिम इलाकों में आक्रामक पोलिंग ने एनडीए की नींद हराम कर रखी है. इस बात की प्रमाणिकता के लिए आंकड़ें पर गौर करें. 2014 के लोकसभा चुनाव में जब मोदी की सुनामी थी, तब भी यहां कि 57 विधानसभा सीटों में से महज 17 सीटों पर ही भाजपा आगे रही. इतना ही नहीं सीमांचल क्षेत्र में तो भाजपा ने लोकसभा की एक सीट भी नहीं जीत सकी थी.

 

दो- टिकट बंटवारा विवाद का असर

एनडीए के भय की शुरूआत फेज एक के चुनाव से ही हो गयी थी. एनडीए के दो घटक दल हिंदुस्तान अवाम मोर्चा और लोकजनशक्ति पार्टी जमुई में बुरी तरह आपस में सीट शेयरिंग के लिए उलझ गयीं. रामविलास पासवान, एक दौर में प्रतिद्वंद्वी रहे नरेंद्र सिंह और उनके बेटे को किसी हाल में स्वीकार करने पर आमादा नहीं थे. भाजपा ने बीच बचाव की कोशिश तो जरूर की लेकिन चुनावी अखाड़े में नरेंद्र सिंह और रामविलास पासवान की आपसी लड़ाई बुरी तरह खुल कर सामने आ गयी. इसका निश्चित लाभ गठबंधन को मिलाना तय सा हो गया था. वहीं भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने डिएनए से बात करते हुए संदेह जताया है कि उसकी सहयोगी पार्टियां- हम, लोजपा और लोसपा अपने वोटबैंक को बचा पाने में बुरी तरह नाकाम साबित हुई हैं. उपेंद्र कुशवाहा के होते हुए भी कुशवाहा समाज ने बड़े पैमाने पर महागठबंधन को वोट कियाा, ऐसी भाजपा नेताओं को खबर मिली है. इसके लिए भाजपा का आरोप है कि उपेंद्र कुशवाहा ने टिकट बंटवारे में भारी गलती की है.

 

तीन- एक्जिट पोल रिपोर्ट और विवाद

एक्जिट पोल पर अंतिम भरोसा हालांकि नहीं किया जा सकता. लेकिन एक्जिट पोल राजनीतिक पार्टियों पर गहरा मनोवैज्ञानिक प्रभाव तो डाल ही देते हैं. 5 नवम्बर को जब अंतिम चरण के मतदान समाप्त हुए तो शाम होते-होते 7 एजेंसियों के एक्जिट पोल सामने आ गये. इन सात में से 5 ने नीतीश-लालू के गठबंधन को जीतता हुआ दिखा दिया. अभी लोग इसी बात पर चर्चा कर ही रहे थे कि आईबएन-7 के एक्जिट पोल ने तो सोशल मीडिया के माध्यम से कोहराम मचा दिया. क्योंकि आईबीएन-7 ने इस सर्वे को दिखाने की घोषणा के बावजूद टेलिकास्ट करने से इनकार कर दिया. एक्सिस द्वार किये गये इस सर्वे को जब चैनल ने नहीं दिखाया तो उसने इसे अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर दिया जिसे विभिन्न समाचार माध्यमों ने इसे पूरी दुनिया तक पहुंचा दिया. इस सर्वे में भी भाजपा गठबंधन को करारी हार दिखाया गया है. महागठबंधन को इस सर्वे में 183 सीट मिलती दिखाया गया है. इस सर्वे को नहीं दिखाये जाने पर आईबीएन चैनल की बेइज्जती जो हुई सो अलग, भारतीय जनता पार्टी इस सर्वे के बाद तो और ही भयाक्रांत हो गयी दिखती है.

By Editor


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