लखनऊ की यह घटना डाक्टरों की काबलियत पर प्रश्नचिंह है.ममता शुक्ला की मौत डाक्टरों की कथित लापरवाही से हुई और उनके पति इंसाफ के लिए भटक रहे हैं. परवेज आलम की रिपोर्ट.
एसजीपीजीआई, लखनऊ के ताकतवर डॉक्टर लॉबी से कानूनी लड़ाई आसान नहीं है. यह बात अपनी पत्नी ममता शुक्ला की मौत के मामले में न्याय पाने को संघर्षरत लखनऊ के अलीगंज निवासी सुरेश चन्द्र शुक्ला हर कदम पर महसूस कर रहे हैं. हेपेटाइटिस-सी से पीड़ित सुश्री ममता की मौत एसजीपीजीआई, लखनऊ में हो रहे इलाज के दौरान हो गयी.
गलत दवा से हुई मौत?
श्री शुक्ला ने इसके लिए गैस्ट्रोइंटेरोलोजी विभाग के डॉ विवेक आनंद सारस्वत और डॉ श्रीजीथ वेणुगोपाल को दोषी बताया कि उन्होंने प्रयोग के तौर पर जानबूझ कर ट्रायल ड्रग थाइमोसीन अल्फा-1 इंजेक्शन दिया जिससे हड्डी का कैंसर होने की काफी सम्भावना रहती है और जो मात्र हेपेटाइटिस बी रोगियों के लिए अनुमन्य है. श्री शुक्ला ने इस सम्बन्ध में थाना पीजीआई में मार्च 2014 में मुक़दमा लिखाया. तब से वे न्याय के लिए लगातार दौड़ रहे हैं.
पहले कोड ऑफ़ मेडिकल एथिक्स 2002 के पैरा 1.3.2 के तहत अपनी पत्नी के इलाज से जुड़े मेडिकल रिकॉर्ड मांगे जाने पर पीजीआई उन्हें टरकाता रहा और उन्हें ये रिकॉर्ड भी तभी मिले जब आईपीएस अफसर अमिताभ ठाकुर ने पीजीआई को सूचना दिए जाने अथवा एथिक्स कोड के पैरा 8 में कार्यवाही किये जाने की बात कही.
अब श्री शुक्ला पुलिस द्वारा माँगा गया स्वतंत्र चिकित्सकीय अभिमत प्राप्त करने के लिए दौड़ लगा रहे हैं. सीएमओ, लखनऊ ने यह माला अपर सीएमओ डॉ डी के चौधरी और डिप्टी सीएमओ आर वी सिंह को संदर्भित किया है. जब श्री शुक्ला इस सम्बन्ध में अपनी बात कहने के लिए 26 सितम्बर को डॉ चौधरी से मिले तो उन्होंने ना सिर्फ अपमानजनक व्यवहार किया बल्कि मामले का पीछा करने के लिए उन्हें भला-बुरा भी कहा.
डॉ चौधरी ने उन्हें अगले दिन बुलाया जब उनके सामने डॉ सारस्वत इन डॉक्टरों के पास आये और उनके आते ही इन डॉक्टरों ने श्री शुक्ला की बात सुने बिना ही चैंबर से बाहर कर दिया.
अब श्री शुक्ला ने पुनः श्री ठाकुर से संपर्क किया है जिन्होंने प्रमुख सचिव चिकित्सा और स्वास्थ्य को पत्र लिख कर विशेषज्ञ डॉक्टरों का एक नया बोर्ड गठित करवा कर निष्पक्ष चिकित्सकीय अभिमत दिलवाने हेतु निवेदन किया है.