अमेरीकी स्थित यूनियन कॉलेज न्यूयार्क के शोधार्थी जैफरी विट्सो ने कहा है कि बिहार में सत्ता बदलने के बाद किडनैपर कंट्रैक्टर बन गए, इसलिए अपराध भी कम हो गया है। शुक्रवार को जगजीवन राम संसदीय शोध संस्थान में ‘बिहार की राजनीति व विकास’ पर आयोजित व्याख्यान में सत्ता बदलने के साथ रिसोर्स के ट्रांसफारमेशन के संबंध में पूछे गए सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि ब्यूरोक्रेसी और डेमोक्रेसी के अंतरसंबंधों को समझने बिना सत्ता के स्थानांतरण का वास्तविक मर्म को नहीं समझा जा सकता है। इस व्याख्यान का आयोजन संस्थान ने ही किया था। इस मौके पर उनकी हाल ही प्रकाशित पुस्तक ‘डेमोक्रेसी एगेंस्ट डवेलपमेंट’ का विमोचन भी किया गया।
जैफरी बिहार की वर्तमान राजनीतिक परिवेश की व्याख्या करते हुए कहा कि महादलित और अतिपिछड़ा वोट ही अब बिहार की दिशा तय करेगा। भोजपुर जिले के कई गांवों में केस स्टडी पर आधारित अपनी पुस्तक के संदर्भ में उन्होंने कहा कि जाति भारतीय राजनीति व समाज का सच है और इसे नकार कर किया गया कोई भी अध्ययन अधूरा है। यहां मुद्दा के बजाय जाति आधारित राजनीति होती है। इसलिए नीति निर्धारक संस्थान भी इसी के आसपास अपनी योजना बनाते हैं। उन्होंने लालू यादव के शासन काल की चर्चा करते हुए कहा कि मंडलवादी राजनीति ने समाज को व्यापक स्तर पर प्रभावित किया है। इसने पिछड़ी जातियों को प्रेरित किया और वह इसके लिए संघर्ष के लिए तैयार हुई। इस दौरान सामाजिक सम्मान की लड़ाई अधिक मुखर हुई और पिछड़ी व दलित जातियों ने भी सवर्णों के सामाजिक वर्चस्व का चुनौती देना शुरू किया।
भूमि संबंधों की चर्चा करते हुए कहा उन्होंने कि भूमि सुधार नहीं होना एक बड़ी समस्या है। इस कारण सामाजिक जड़ता को अधिक चुनौती नहीं मिल सकी। गांवों की सत्ता जाति के साथ ही जमीन आधारित भी थी। जिसके पास जमीन और जिसकी जाति ज्यादा मुखर हुई, उसका वर्चस्व गांवों में रहा। बाद में यही लोग दलाल और ठेकेदार बन गए। फिर सत्ता पर वर्चस्व बनाए रखने में सफल रहे। लालू यादव के राज में सहकारिता की स्थिति खराब हो गयी तो इसकी वजह भी सामाजिक वर्चस्व ही था। लालू यादव का मानना था कि सहकारिता पर राजपूत व भूमिहारों का कब्जा है। इस कारण सहकारिता आंदोलन को समाप्त किया और बाद में अधिकांश सहकारी बैंक ठप हो गए। इस मौके पर संस्थान के निेदेशक श्रीकांत, राजद विधायक दल के नेता अब्दुलबारी सिद्दीकी, विधान पार्षद रामबचन राय, एएन सिन्हा संस्थान के निदेशक डीएम दिवाकर, सामाजिक कार्यकर्ता सत्यनारायण मदन, पत्रकार अमरनाथ तिवारी समेत बड़ी संख्या बुद्धिजीवी मौजूद थे।