बिहार में सत्तारूढ़ दल जदयू के बागी विधायक भाजपा की परेशानी के सबब बन सकते हैं। सीएम नीतीश कुमार की राजनीति से खफा रहने वाले अधिकांश विधायकों का आश्रय स्थल भाजपा बनेगी। कुछ रालोसपा में तो एकाध लोजपा में ठौर तलाश सकते हैं। पूर्व सीएम जीतनराम मांझी की पार्टी ‘हम’ में कितने बागी विधायक बच जाएंगे, यह मांझी को भी भरोसा नहीं होगा।
वीरेंद्र यादव
नीतीश कुमार बागी विधायकों को बेटिकट करेंगे, यह पहले से तय था। बागी एनडीए में जाएंगे, यह भी तय था। भाजपा बागियों को एडजस्ट करेगी, लगभग यह भी तय था। लेकिन बागियों की बाढ़ आएगी, यह भाजपा को भी भरोसा नहीं था। किस्तों में जदयू के बागी भाजपा का कमल थाम रहे हैं। इस मामले में इस्लामपुर के विधायक राजीव रंजन सबसे आगे रहे। बुधवार को ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानू समेत जदयू के चार बागी विधायकों ने भाजपा का दामन थाम लिया। यह सिलसिला अभी जारी रहेगा।
जदयू के तीन दर्जन हो सकते हैं ‘बेटिकट’
चुनाव को लेकर भाजपा के कुछ विधायक भी नीतीश खेमा में जगह तलाश सकते हैं। लेकिन नीतीश व लालू से बेटिकट हुए ‘गैरबागी’ विधायक एनडीए में ही जगह तलाश करेंगे। उनको अधिक अपेक्षा भाजपा से होगी। सूत्रों की मानें तो बागियों के अलावा भी नीतीश कम से कम तीन दर्जन विधायकों को बेटिकट करेंगे और उनकी जगह नये चेहरे को उतारेंगे। जदयू के बेटिकट विधायक में से भाजपा कितनों को पचाएगी। यह बड़ा सवाल है। नीतीश उन्हें ही बेटिकट करेंगे, जिनके परफार्मेंस से नाखुश होंगे। ऐसे ‘नकारा’ विधायकों को क्या भाजपा कमल थमाएगी। फिर भाजपा के अपने कार्यकर्ता हैं, कुछ राजनीतिक जरूरतें हैं, जिनकी अनदेखी भाजपा नहीं कर सकती है। ऐसी स्थिति में यह देखना रुचिकर होगा कि भाजपा खेमा जदयू के कितने बागियों को टिकट देता हैं और कितने टिकट की तलाश अन्य दलों के दरवाजे पर माथा टेकते हैं।