लालू प्रसाद के जेल जाने के बाद अब चर्चा इस बात की है कि लालू बिना राजद की राजनीतिक हैसियत क्या होगी खास कर तब जब विभिन्न दलों में यादव नेतृत्व उभार पर है.Laloo

प्रियदर्शी रंजन

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जिस शख्स के इर्द-गिर्द तकरीबन तीन दशक तक बिहार की सियासत घूमती रही, केन्द्र की रानीति में हस्तक्षेप रहा. जिसने अपने पुरे राजनीकि कैरियर को एक मंच के तौर पर इस्तेमाल किया, कभी तमाशाई राजा के तौर पर गंवई लटकों झटकों से दुनिया को हसायां. खुद को सुदशर्न चक्रधारी बताकर तथाकथित दैत्यों का संहार किया और दलित में राजनीतिक-सामाजिक जागृति पैदा की. तो कभी विकास शब्द से चीढने वाले रेलमंत्री बनने के बाद दुनिया को तरक्की का पाठ पढ़या. उन्हीं लालू प्रसाद यादव का चारा घोटाला में अदालत द्वारा दोषी ठहराने और जेल जाने से बिहार की सियासत में सामाजिक न्याय धारा कुंद सी पड़ती दिख रही है.

वहीं राष्ट्रीय जनता दल के सामने दो यक्ष प्रष्न खड़े हैं कि लालू की जगह कौन लेगा? और क्या पार्टी लालू के बगैर अपने वोट बैंक को बरकरार रखने में कामयाब होगा? वो भी तब जब आम चुनाव में महज चार-पांच महीना ही बाकी है.

ऐसा नहीं की लालू पहली बार जेल गये हों. इससे पहले जेल जाने के वक्त बिहार की राजनीति पर लालू का वर्चस्व था पर आज हालात बदल चुके हैं. उस समय यादव समाज के, लालू एक मात्र स्थापित नेता थे पर अब राजद से बाहर दुसरे दलों में कई यादव नेता अपनी पहचानर पुख्ता करने में लगे हैं. जदयू ने शरद यादव, विजेंद्र यादव, अर्जुन राय सरीखे यादव नेताओं की एक पूरी पलटन तैयार कर रखा है. भाजपा के पाले में नंदकिशोर यादव, हुकुमदेव नारायण जैसे नेता यादव मतदाताओं में को एक हद तक प्रभावित करने का माद्दा रखते हैं.इधर सीमांचल में पप्पू यादव की सक्रियता बढ़ी है.

राजद की नयी टीम

हलांकि लालू ने जेल जाने के पुर्व पार्टी के संभावित चुनौतिओं के मद्देनजर पार्टी को दृढ़ करने का पूरा प्रयास किया था. कुछ दिनों पुर्व ही राजद के15 बडे नेताओं की एक टीम गठित की गई थी. जिसके संयोजक रघुवंश प्रसाद सिंह को बनाया गया है. इस टीम में जातिय व सामाजिक संतुलन का ख्याल रखा गया है. राजद के परिवर्तन रैली में लालू ने अपने दोनो बेटो तेजप्रताप व तेजस्वी यादव को लांच किया था. बीते कुछ महीनों में तेजस्वी की सियासी सक्रियता को लालू के उतराधिकार से जोड कर देखा जा रहा था. लालू के जेल जाने के दौरान साये की तरह रहे. सजा मुर्करर होने पर राजद की ओर से तेजस्वी ने ही पहली प्रतिक्रिया दी और जनता के बीच अपनी बात रखने का ऐलान किया. राजद में तेजस्वी को लेकर कोई विरोध भी नही दिखता. हलांकि राजद में एक धडा तेजप्रताप यादव में अपनी निष्ठा जताता रहा है. पार्टी के छात्र अध्यक्ष के मुताबिक लालू की गैर मौजूदगी में तेजप्रताप पार्टी को उन्ही की शैली में संचालित कर सकते हैं.

अब लोग इस बात पर भी चर्चा करने लगे हैं कि राजद में लालू के बाद कोई ऐसा नेता नही जिसका प्रभाव समूचे बिहार पर हो. रघुवंश प्रसाद की छवि इमानदार की है लेकिन उनका नेतृत्व राजद के कार्यकर्तायों को स्वीकार बनाना एक बड़ा चैलेंज होगा. यही बात रघुनाथ झा पर लागू होती है. सूबे में नेतृत्व के लिहाज से सवर्णों के लिए यह दौर दोयम दर्जे का है. कांग्रेस, भाजपा, लोजपा, जदयू प्रदेश में सभी दलों का शीर्ष नेतृत्व पिछडे नेताओं के हाथ में हैं. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मंगल पांडे व जदयू के वशिष्ट नाराण सिंह ब्रह्मण व राजपूत जाति से आते हैं मगर वे पार्टी के शीर्ष चेहरा नहीं हैं. रही बात रामकृपाल, जय प्रकाष यादव व उनके सरीखे अन्य नेताओं की तो वे सभी इलाकाई नेता हैं.

ऐसे में आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा की राजद अपने स्थापित नेता के बिना अपने जनाधार को कैसे मजबूत करने में सफल होता है और अपनी राजनीतिक शक्ति को फिर से कैसे स्थापित कर सकता है?

By Editor

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