जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार। सुशासन बाबू, छवि कुमार से लेकर कई उपनामों से चर्चित। आज छठीं बार फिर मुख्यमंत्री की शपथ ली। उनके साथ भाजपा के सुशील कुमार मोदी ने भी शपथ ली। नीतीश के इस्तीफे और शपथग्रहण में करीब 16 घंटे का अंतर रहा। बिहार के इतिहास में पहली बार किसी मुख्यमंत्री ने मुंह अंधेरे में इस्तीफा दिया और उजियारे के साथ फिर शपथ ग्रहण कर लिया। इस कारण नीतीश कुमार इतिहास पुरुष भी बन गये।
वीरेंद्र यादव
कुर्सी के लिए नीतीश कुमार ने कई समझौते किये। लेकिन भाजपा के साथ नीतीश कुमार का नया समझौता बहुत महंगा पड़ेगा। समझौते के साथ भाजपा ने अपनी पहली लड़ाई जीत ली। भाजपा लालू यादव से नीतीश कुमार को अलग करने में सफल हो गयी। भाजपा अपने जनाधार विस्तार की लगातार कोशिश कर रही है। इस प्रयास में भाजपा का अगला निशाना नीतीश कुमार का कथित आधार वोट होगा। वैसे भाजपा इन वोटों में पहले से सेंधमारी कर रही है।
नये समझौते के साथ बिहार की राजनीतिक लड़ाई बदल गयी है। लोकसभा चुनाव के पहले तक बिहार की लड़ाई लालू यादव व नीतीश कुमार के बीच थी। उसी लड़ाई में भाजपा को जबरदस्त फायदा हुआ था। लेकिन नीतीश के साथ भाजपा के नये गठबंधन बनने के बाद अब लड़ाई भाजपा और लालू यादव के बीच हो गयी है। लालू यादव सांप्रदायिकता, विपक्षी एकता और लोकतंत्र के खतरे के नाम पर भाजपा के खिलाफ मोर्चा खालेंगे। भाजपा लालू यादव के खिलाफ भ्रष्टाचार, परिवारवाद और जातिवाद के नाम पर मोर्चा खालेगी। इस लड़ाई में नीतीश कुमार के जीरो टॉलरेंस, सुशासन और छवि हाशिये के विषय हो जाएंगे।
यह भी भाजपा की बड़ी सफलता है कि उसने नीतीश के मुद्दे को हाशिये पर धकेल दिया है। यदि नीतीश का मुद्दा हाशिये पर गया तो नीतीश स्वत: हाशिये पर चले जाएंगे। इसके साथ ही 2013 और 2017 के भाजपा में काफी बदलाव आ गया है। भाजपा अब ‘स्टेपनी’ की भूमिका में रहने वाली नहीं है। भाजपा ने नीतीश कुमार को अपनी रणनीति के तहत समर्थन दिया है, ताकि सत्ता में आकर संगठन को अधिक मजबूत बना सकें। भाजपा का संगठन जितना मजबूत होगा, नीतीश कुमार को आधार उतना ही कमजोर। नीतीश कुमार कुर्सी के सौदे में अपनी जमीन हार चुके हैं। इसका लाभ भाजपा को ही मिलेगा।