केंद्रीय सेवाओं में कार्यरत अधिकारियों में वेतन विसंगति को लेकर आवाज उठने लगी है और इसमें समानता की बात कही जाने लगी है। केंद्रीय सेवाओं के अधिकारियों ने सातवें वेतन आयोग के समक्ष प्रस्ताव देने की योजना बनायी है कि भारतीय प्रशासनिक सेवा और भारतीय विदेश सेवा के अधिकारियों के समान उनका भी वेतनमान हो।
भारतीय पुलिस सेवा, भारतीय राजस्व सेवा, आइआरटीएस समेत अन्य केंद्रीय सेवाओं का पक्ष रखते हुए भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी सत्य प्रशांत ने अपने ब्लॉग पर लिखा है कि 1 अप्रैल,16 से सातवें वेतन आयोग की अनुशंसा के अनुसार, वेतनमान तय होना है। इसमें आयोग को समान वेतन पर भी विचार करना चाहिए।
उन्होंने लिखा है कि भारतीय प्रशासनिक सेवा और भारतीय विदेश सेवा का वेतनमान शुरू से अन्य केंद्रीय सेवाओं से करीब चार-पांच हजार अधिक होता है। यह विसंगति समय के साथ अधिक होती जाती है। इनको अन्य तरह के भत्ते भी मिलते हैं। विभिन्न तरह के भत्ते का निर्धारण भी मूल वेतन पर ही होता है। इस कारण वेतन की यह खाई बढ़ती जाती है।
श्री प्रशांत ने लिखा है कि 1979 के पहले चयन की प्रक्रिया और शैक्षणिक योग्यता अलग-अलग होती थी, लेकिन 1979 से एकल चयन प्रक्रिया प्रारंभ हुई। इस प्रक्रिया में सबके लिए समान योग्यता निर्धारित की गयी । पहले के वेतन आयोगों ने यह मान रखा था कि आइएएस व आइएफएस की कार्य की स्थिति व सेवा शर्तें अलग होती हैं और काम भी चुनौती भरा होता है। लेकिन ऐसी कोई बात नहीं है। सभी तरह की सेवाओं में चुनौतियां समान हैं और जोखिम भी अधिक है। आप पुलिस सेवा को ही लें तो उनका कार्य किसी भी स्थिति में प्रशासनिक सेवा से कम चुनौती भरा नहीं होता है। कानून व्यवस्था बनाए रखने में डीएम से कम जिम्मेवारी एसपी की नहीं होती है।
नक्सली समस्याओं के खिलाफ अभियान चलाने में डीएम से ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका एसपी की होती है। स्थानांतरण सभी सेवाओं में होती है। वैसी स्थिति में सबके लिए समान वेतन का होना जरूरी है। अंत में प्रशांत ने कहा है कि सातवें वेतन आयोग में सबके लिए समान वेतन का निर्धारण होना चाहिए, ताकि वेतन के स्तर पर भेदभाव नहीं हो।