केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान को सिर्फ इसलिए जानना जरूरी नहीं कि उन्होंने अमरोहा में चीख-चीख कर कहा कि उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनेगी तो यादवों को खोज-खोज कर निकाला जायेगा.
बालियान को सिर्फ इसलिए चिंन्हित करने की जरूरत नहीं कि उन्होंन जाति सूचक शब्द का इस्तेमाल करते हे एक जाति को कठघरे में खड़ा किया. उन्हें इसलिए भी जानना जरूरी नहीं कि उन्होंने उत्तर प्रदेश के मंत्री आजम खान को उसी अमरोहा शहर में आतकंवादी और हत्यारा तक कहा. बल्कि उन्हें जानने की जरूरत इसलिए भी है कि कल तक गुनमानी की जिंदगी जी रहे बालियान वहीं हैं जिन पर मुजफ्फरनगर दंगों के मास्टरमाइंड होने का इल्जाम लगा.
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इतना ही नहीं बालियान इस आरोप में जेल की हवा खा के लौट चुके हैं. यह वही संजीव बालियान हैं जिन्होंने निषद्ज्ञा के बावजूद मुजफ्फरनगर में महापंचायत का आयोजन किया और उसमें भी नफरत और घृणा के ऐसे बोल बोले कि लोग अपने हाथों में कटार, तलवारें और बंदूक लेकर निकल पडे और मुजफ्फनगर हफ्तों तक जलता रहा और महीनों तक पचास हजार से ज्यादा औरतें, बच्चे और बूढ़ें शिविर में जिंदगी बिताने को मजबूर हुए.
संजीव बालियान को इसलिए भी जानना जरूरी है कि जब वह अमरोहा की सभा में भाषण दे रहे थे तो उन्होंने भाषण की शुरुआत में साफ-साफ कहा कि मोदी का सरदर्द बढ़ा रहे मंत्री मर्यादा में रहें. उन्हें अपनी मर्यादा का ध्यान रखना चाहिए लेकिन पलभर में वह खुद मर्यादा भूल कर अपनी असली रूप में आ गये. किसी जाति समूह को नाम लेकर टिप्पणी करना, किसी मंत्री को बिना सुबूत के आतंकवादी और हत्यारा तक कहना, एक घृणित और द्वेष से भरी मानसिकता है. ऐसे लोग मंत्री हो कर न सिर्फ सरकार को अमर्यादित कर रहे हैं बल्कि देश की छवि के लिए भी घातक हैं.
कौन हैं बालियान
गुमनामी की जिंदगी जीने वाले बालियान और उन जैसे लोगों का ही असर रहा कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दंगाप्रभावित तमाम सीटों पर भाजपा पिछले लोकसभा चुनाव में जीत गयी क्योंगि समाज साम्प्रदायिक रूप से बंट गया. इसके तोहफे में मोदी सरकार ने उन्हें मंत्री के पद तक पहुंचा दिया. मोदी मंत्रिमंडल में कई कद्दावर नेताओं का मंत्री बनने का सपना पूरा न हो सका पर संजीव बालियान कृषि राज्यमंत्री बनाये गये. जेल की हवा खाने और दंगा के आरोप के बावजूद बालियान आज देश के राज्य मंत्री हैं. और जब वह खुद किसी जाति और किसी मंत्री का नाम लेकर ऐसे आरोप लगायें जिससे समाज में घृणा और अशांती फैलने का खतरा हो तो ऐसे में सरकारें ही आखिरी उम्मीद बचती हैं. लेकिन अब सवाल यह है कि क्या मोदी सरकार जहर के ऐसे बीज बोने वालों को सबक सिखायेगी?
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