केंद्र सरकार की बेरुखी की मार से बिहार एक बार फिर बेहाल है. बाढ़ थर्मल पावर का निर्माण पिछले साल ही पूरा होने के बावजूद इसका उद्घाटन अब तक नहीं हो पाया है.
इससे बिहार को वहां से उसके हिस्से की बिजली नहीं मिल पा रही है. वहीं, गांधी सेतु की मरम्मत का जिम्मा उठाने का वादा करने के बाद केंद्र ने इस पर चुप्पी साध ली है.
प्रभात खबर की रिपोर्ट
मंत्री को वक्त नहीं, चार बार टला उद्घाटन
बिजली की किल्लत ङोल रहा बिहार अपने हिस्से की 330 मेगावाट बिजली के लिए केंद्र की ओर टकटकी लगाये बैठा है. बाढ़ स्थित एनटीपीसी का यूनिट बन कर तैयार है. आधिकारिक तौर पर इसका उद्घाटन हो जाये, तो बिहार के हिस्से की 330 मेगावाट बिजली मिलने लगेगी. इससे राज्य में बिजली की समस्या एक हद तक कम हो पायेगी.
अभी मांग 3300 मेगावाट और आपूर्ति करीब 2700 मेगावाट है. इस तरह बाढ़ से 330 मेगावाट मिलने के बाद राज्य में बिजली की कमी लगभग दूर हो जायेगी. लेकिन, इस यूनिट का उद्घाटन चार बार ऐन वक्त पर टल गया है. एनटीपीसी इसका कारण नहीं बता रहा. सूत्र बताते हैं कि एनटीपीसी प्लांट को पिछले साल अक्तूबर में ग्रिड से जोड़ने का काम पूरा हो गया था. कॉमर्शियल डिक्लेरेशन की घोषणा होने पर बिजली आपूर्ति के एग्रीमेंट का अनुपालन शुरू हो जायेगा. पहली बार मार्च, 2014 में इसका उद्घाटन होना तय हुआ था, लेकिन लोकसभा चुनाव की घोषणा के कारण उसे स्थगित करना पड़ा. केंद्र में नयी सरकार के गठन के बाद जून में एक बार फिर से उद्घाटन की तैयारी हुई, लेकिन किसी कारणवश उसे स्थगित करना पड़ा. केंद्रीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल द्वारा 26 सितंबर को उद्घाटन किये जाने की चर्चा थी, लेकिन वह तिथि भी बदल गयी. अक्तूबर के प्रथम सप्ताह में उद्घाटन होने की चर्चा का बाजार गरम हुआ, लेकिन उद्घाटन नहीं हुआ. जानकारों ने बताया कि उद्घाटन को लेकर उसकी तैयारी एक सप्ताह पहले शुरू करनी पड़ती है. ऐसी स्थिति में फिलहाल उद्घाटन की कोई संभावना दिख नहीं रही है.
बाढ़ थर्मल प्लांट
बाढ़ थर्मल प्लांट में 660 मेगावाट के दो यूनिट से कुल 1320 मेगावाट बिजली का उत्पादन होना है. इसमें से बिहार को 50 फीसदी यानी 660 मेगावाट बिजली मिलेगी. यूनिट संख्या एक चालू होने के बाद छह माह बाद दूसरा यूनिट भी चालू हो जायेगा. सूत्र ने बताया कि प्लांट में कॉमर्शियल उत्पादन की प्रक्रिया पूरी हो गयी है. कॉमर्शियल डिक्लेरेशन होने के बाद जिसके साथ एग्रीमेंट हुआ है, उसे आपूर्ति शुरू हो जायेगी. राज्य में पीक आवर में लगभग 3300 मेगावाट बिजली की आवश्यकता है. बिहार पावर कंपनी लगभग 2300 से 2500 मेगावाट की आपूर्ति कर रही है. दशहरा के समय कंपनी ने अधिकतम 2740 मेगावाट बिजली आपूर्ति की.
वादा करके भूल गये नितिन गडकरी
केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने एक माह पहले कहा था कि महात्मा गांधी सेतु की मरम्मत का जिम्मा केंद्र उठायेगा. मगर अब तक इस दिशा में कुछ भी नहीं हो सका है. एक बार फिर उत्तर बिहार की लाइफलाइन माने जानेवाले इस पुल पर खतरा मंडराने लगा है. केंद्र की घोषणा के बाद राज्य सरकार ने भी मरम्मत का काम बंद कर दिया है.
राज्य सरकार केंद्र की ओर नजर लगाये बैठी है. गडकरी ने कहा था कि गंगा पुल से रामाशीष चौक तक की सड़क को नेशनल हाइवे का अंग मान कर पुल की मरम्मत पर होनेवाले संपूर्ण खर्च को केंद्र सरकार वहन करेगी. केंद्र की इस घोषणा से राज्यवासियों की उम्मीदें जगी थीं. 1982 में चालू हुए इस पुल की मरम्मत पर पिछले 12 वर्षो में राज्य सरकार के 6.98 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं. फिलहाल पुल के दो पायों व सरफेस निर्माण का काम चल रहा है. हैदराबाद की फ्रेसिनेट कंपनी को इसका जिम्मा दिया गया है, लेकिन उसकी हालत भी गांधी सेतु के निर्माण को लेकर खस्ता है. तय समय पर दोनों पायों व सरफेस का निर्माण नहीं करने के कारण कंपनी को ब्लैकलिस्टेड कर दिया गया है. यानी जब तक वह इस काम पूरा नहीं करती है, तब तक उसे सूबे में कोई दूसरा काम नहीं मिलेगा.